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= बजट के अभाव में रुक गया निर्माण कार्य
= पहाड़ चढ़ते ही दम तोड़ रही सरकारी योजनाए

((( कुबेर सिंह जीना/पंकज भट्ट/विरेन्द्र बिष्ट)))

गांवो में विकास कार्यों के लिए लाखों करोड़ों रुपये से विकास कार्यों की स्वीकृति तो मिलती है पर बजट की बाजीगरी व विभागीय अनदेखी के चलते निर्माण कार्य पूरे नहीं हो पाते। आलम यह है की बजट के अभाव में तेरह वर्ष बाद भी सुदूर छियोडी़ गांव में बरात घर का निर्माण पूरा न हो सका। गरीबों व जरुरतमंदों के लिए बनाए जाने वाला बरात घर बजट के अभाव व अनदेखी के चलते खस्ताहालत में पहुंच चुका है।
सरकारी योजनाएं पहाड़ चढ़ते चढ़ते दम तोड़ जा रही हैं। खासकर गांवों में विकास कार्य पूरे ही नहीं हो पा रहे हैं। जिससे ग्रामीण खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं बात हो रही है बेतालघाट व रामगढ़ ब्लॉक की सीमा पर स्थित छियोडी़ गांव की। गांव में जरूरतमंदों व गरीबों के लिए करीब तेरह वर्ष पूर्व लाखों रुपए की लागत से बरात घर स्वीकृत हुआ। उम्मीद थी कि बरातघर बन जाने के बाद लोगों को इसका लाभ मिल सकेगा। कई सामूहिक कार्य के साथ ही गरीब परिवारों के विवाह समारोह आदि भी इसी में होंगे पर विभागीय अनदेखी व समय की मार से समय के साथ-साथ उम्मीद टूटती चली गई। ग्रामीण बताते हैं कि जोर-शोर से शुरू हुए बरात घर का निर्माण कार्य धीरे-धीरे कार्य पूरा होने से पहले ही समाप्त हो गया। पंचायत प्रतिनिधियों के अनुसार निर्माण कार्य की अंतिम किस्त ही नहीं मिल सकी जिससे कार्य रुक गया। बारात घर अस बदहाल हो चुका है। खिड़की दरवाजे टूट चुके हैं। दीवारों व कमरों का प्लास्टर भी गिरने लगा है। ग्रामीणों ने तत्काल बरात घर के लिए धनराशि अवमुक्त कर निर्माण कार्य पूरा कराए जाने की मांग उठाई है। चेतावनी दी है कि यदि गांव की उपेक्षा की गई तो सड़क पर उतर आंदोलन शुरू कर दिया जाएगा।
विकास भवन से ब्लॉक तक की दौड़ पर नहीं मिला बजट
ग्रामीण बताते हैं कि बरात घर का कार्य पूर्ण कराने के लिए विकास भवन से लेकर ब्लॉक मुख्यालय तक की दौड़ लगाई गई पर कोई सुनवाई न हुई। बरात घर के लिए बजट की अंतिम किस्त जारी ना हो सकी। कई नेताओं के सामने भी गुहार लगाने के बावजूद आज तक धनराशि नहीं मिली। ग्रामीणों का आरोप है कि पूर्व में महज करीब सत्तर हजार की धनराशि रुकी थी यदि बजट मिल गया होता तो कार्य पूरा करा लिया गया होता अब स्थिति यह है कि करीब तीन लाख रुपये से ज्यादा मरम्मत में ही खर्च हो जाएगा।