◾जोखिम बढ़ता गया पर नहीं हो सके सुरक्षा के उपाय
◾काफी हद तक हम खुद भी हैं जिम्मेदार
◾ना पहाड़ बचाने को लगा सके पौधे, नदी के बहाव क्षेत्र को बढ़ते चले गए
◾मुनाफे के फेर में हाईवे से सटी थुआ कि पहाड़ी को दिए जगह-जगह जख्म

((( ब्यूरो रिपोर्ट गरमपानी)))

बारिश की दस्तक के साथ ही गरमपानी खैरना क्षेत्र के वासिंदे सिहर जा रहे हैं। जगह-जगह दरकता पहाड़ तथा उफनाई शिप्रा नदी दहशत पैदा कर रही है। बिगड़ते हालातों को समय पर नहीं संभाला जा सका उसके उलट जर्जर हालत में पहुंच चुकी थुआ की पहाड़ी को जगह-जगह गहरे जख्म दे डालें वही उत्तरवाहिनी शिप्रा के प्रवाह क्षेत्र में भी कंक्रीट का जंगल खड़ा कर डाला।
कुमाऊं के तमाम पर्वतीय जनपदों को जोड़ने वाला गरमपानी खैरना क्षेत्र खतरे की जद में आ चुका है। बाजार के ठीक ऊपर विशालकाय थुआ कि पहाड़ी से जगह-जगह भूस्खलन होने से बड़े-बड़े बोल्डर बाजार क्षेत्र तक पहुंच रहे हैं जबकि शिप्रा नदी का बिगड़ता स्वरुप बड़े खतरे की ओर इशारा कर रहा है। वर्ष 2010 की आपदा की याद ताजा करें तो तभी एक बड़े मास्टर प्लान की जरूरत आन पड़ी थी पर प्रतिस्पर्धा की दौड़ में हर कोई सब कुछ भुलाते चले गया। दरक रहे पहाड़ के उपचार को वृहद पौधरोपण की जरूरत महसूस नहीं की गई जबकि शिप्रा के बहाव क्षेत्र में बेतरतीब ढंग से किए गए निर्माण कार्यों को भी न रोका जा सका। अब लगातार बिगड़ते हालातों से क्षेत्र के वाशिंदे खौफजदा हैं। लोगों की माने तो अब भी समय रहते यदि नहीं चेता गया तो भविष्य में बड़े संकट का सामना करना पड़ सकता है। दरक रहे पहाड़ के उपचार को वृहद वृक्षारोपण अभियान के साथ ही उत्तरवाहिनी शिप्रा के कहर से क्षेत्र को बचाने के लिए विशेषज्ञों की देखरेख में सुरक्षा कार्य बेहद जरूरी हो चुके हैं।