= चारो ओर उगी झाडियां,दरवाजे खिड़की भी टूटे
= लाखो की लागत से बना भवन बदहाल
= विभागीय लापरवाही से ग्रामीणों में रोष

(((कुबेर जीना/अंकित सुयाल/मनीष कर्नाटक/भीम बिष्ट की रिपोर्ट)))

सुदूर गांवों में सुविधाएं पहुंचाने के लाख दावे किए जाएं पर धरातल में दावे खोखले साबित हो रहे हैं। सुदूर छियोडी़ – धूरा गांव के पशुपालकों को गांव में ही पशुओं के उपचार को बनाया गया पशु अस्पताल सफेद हाथी बन चुका है। हालत यह है कि खिड़की दरवाजे तक टूट चुके हैं। विरान पड़ा पशु अस्पताल चीख चीख कर बदहाली बयां कर रहा है।

खेती-बाड़ी पर प्रकृति की मार से संकट गहरा गया है। अब गांव में पशुपालन ही एकमात्र आय का जरिया बन चुका है। उसमें भी जंगली जानवर पशुओं को नुकसान पहुंचा रहे हैं। कई बीमारियों से पशुओं की मौत तक हो जा रही है ऐसे में उपचार के लिए पशुपालकों को दूरदराज रुख करना पड़ रहा है। सुदूर छियोडी़ – धूरा गांव के पशुपालकों के पशुओं को उपचार दिलाने के लिए गांव में वर्षों पूर्व पशु अस्पताल का निर्माण किया गया लाखों रुपयो से बना भवन खंडहर में तब्दील हो चुका है। आसपास उगी झाड़ियां विभागीय लापरवाही की हकीकत बयां कर रही है। ग्रामीणों के अनुसार जबसे भवन तैयार हुआ तब से आज तक एक भी कर्मचारी तैनात नहीं हो सका अब भवन खंडहर में तब्दील हो चुका है। मजबूरी में गांव के पशुपालकों को करीब 20-25 किलोमीटर दूर पशुओं के उपचार को जाना पड़ता है कभी उपचार के अभाव में पशु दम तोड़ देते हैं गांव के लोगों मैं विभागीय उपेक्षा के खिलाफ गहरा रोष व्याप्त है। ग्रामीणों ने गांव में पशु चिकित्सक की तैनाती की मांग उठाई है।