🔳 खर्च किए गए बजट की वसूली कर रोजकोष में जमा करवाने की मांग
🔳 बगैर जांच पड़ताल के 92 लाख रुपये खर्च किए जाने का आरोप
🔳 किसानों, व्यापारियों व पंचायत प्रतिनिधियों ने खोला मोर्चा
🔳 खैरना क्षेत्र में नौ वर्ष पूर्व बनाया गया आपणु बाजार
🔳 लाभ मिलना तो दूर आपणु बाजार में कदम तक नहीं रख सके किसान
[[[[[ टीम तीखी नजर की रिपोर्ट] ]]]]]]

किसानों को बिचौलियों के जंजाल से बचाने के लिए खैरना क्षेत्र में 92 लाख रुपये की सरकारी धनराशि खर्च कर बनाया गया आपणु बाजार निति नियंताओं की कार्यप्रणाली की हकीकत बयां कर रहा हूं। भारतीय सेना की जमीन पर हक जताने व न्यायालय से फैसला सेना के पक्ष में दिए जाने के बाद से ही किसानों की उम्मीदें धूमिल हो गई है। रह रह कर सवाल उठ रहा है की जब भूमि सेना की थी तो बगैर जांच पड़ताल के भारी भरकम बजट खर्च किसको लाभ पहुंचाने को किया गया ?
बेतालघाट, रामगढ़ व पड़ोसी ताड़ीखेत ब्लॉक के किसानों को लाभ पहुंचाने के मकसद से वर्ष 2015 में मंडी समिति हल्द्वानी ने अल्मोड़ा हल्द्वानी हाइवे पर खैरना क्षेत्र में करीब 0.44 हेक्टेयर (22 नाली ) जमीन पर लगभग 92 लाख रुपये की भारी भरकम धनराशि से आपणु बाजार की नींव रखी। कार्य पूरा हो जाने के बाद किसानों ने लाभ मिलने का सपना देखा पर आज नौ वर्ष का लंबा समय बीतने के बावजूद सपना पूरा न हो सका। कुमाऊं रेजिमेंटल सेंटर ने आपणु बाजार की जमीन पर अपना हक जता न्यायालय में वाद दायर कर दिया। न्यायालय ने भी निर्णय सेना के पक्ष में दिया। फैसला आने के बाद सेना ने आपणु बाजार के मुख्य गेट पर ताला लगा आवाजाही प्रतिबंधित कर दी साथ ही भूमि पर स्वामित्व का बोर्ड भी स्थापित कर दिया। 92 लाख रुपये की लागत से बने आपणु बाजार को देख किसान मायूस हैं वहीं मंडी समिति के अधिकारियों की कार्यप्रणाली को भी कोस रहे हैं। किसान गोधन सिंह के अनुसार जब जमीन सेना की थी तो मंडी समिति ने लाखों रुपये की धनराशि खर्च ही क्यों की। आरोप लगाया की बजट को ठिकाने लगाने को निर्माण करवाया गया। व्यापारी नेता विरेन्द्र सिंह बिष्ट, गजेंद्र सिंह नेगी, क्षेत्रीय जन विकास संघर्ष समिति के मनीष तिवारी, फिरोज अहमद, दयाल सिंह, बिशन सिंह, संजय सिंह, शिवराज सिंह आदि ने सेना की भूमि पर जानबूझकर आपणु बाजार का निर्माण करवाने वाले अधिकारियों की भूमिका की जांच करवाने तथा खर्च हुए बजट की वसूली उन्हीं अधिकारियों से करवा सरकार के कोष में जमा करवाए जाने की मांग उठाई है। सरकारी भूमि चिह्नित कर क्षेत्र में उपमंडी स्थापित करने पर जोर दिया है ताकी पहाड़ के किसानों को लाभ मिल सके।

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