◼️ स्मैक की बढ़ती लत से बर्बाद हो रहे नौनिहाल
◼️ प्रदेश में तेजी से पांव पसार रहा स्मैक कारोबार
◼️ सरकार ने वर्ष 2025 तक किया है काले कारोबार को खत्म करने का दावा पर तब तक सब कुछ हो चुका होगा बर्बाद
((( टीम तीखी नजर की रिपोर्ट)))
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वर्ष 1980 में शुरू हुए ‘नशा नहीं, रोजगार दो’ आंदोलन में एक बार फिर से जान फूंकने की जरुरत महसूस की जा रही है। इस आंदोलन से राज्य में शराब माफिया के खिलाफ बड़े पैमाने पर मुहिम शुरू हुई थी और युवाओं को शराब की जगह रोजगार दिलाने के लिए बड़े पैमाने पर आंदोलन हुए थे। इस बार शराब के साथ ही राज्य में तेजी से पैर फैला रहे स्मैक के काले कारोबार के खात्मा करने के लिए एक बड़ी मुहिम की जरूरत महसूस कर रहे हैं।
स्मैक और अन्य ड्रग्स के जरिए राज्य की युवा पीढ़ी को बर्बाद किया जा रहा है। सरकार और अफसर कार्रवाई के नाम पर महज रस्म अदायगी कर रहे हैं। कई लोग राज्य में ड्रग्स की सप्लाई को ड्रग जेहाद तक करार दे रहे हैं। राज्य की युवा पीढ़ी तेजी से बर्बाद की ओर जा रही है। अभी हाल के सालों तक राज्य में नशे के लिए शराब और भांग तथा गांजे आदि का सेवन किया जाता था और इनको ज्यादा खतरनाक नहीं माना जाता था। लेकिन अब उत्तराखंड में स्मैक और सिंथेटिक ड्रग्स का कारोबार करने वालों का जाल फैल गया है। इस जाल को खत्म करने और ड्रग सप्लाई की जड़ को खत्म करने में राज्य का सारा सिस्टम फेल हो रहा है। हालात को देखते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उच्चस्तरीय बैठक कर 2025 तक राज्य से ड्रग्स के काले कारोबार को खत्म करने का निर्देश अधिकारियों को दिए है। क्या ये काम हो पाएगा ये भविष्य के गर्भ में है। इसके साथ ही 2025 तक का समय बहुत ज्यादा है, तब तक न जाने कितने और युवा ड्रग्स की चपेट में आ जाएंगे। शांत समझे जाने वाले गांवों में तक स्मैक की धमक से तमाम गंभीर सवाल भी खड़े हो रहे हैं।