◼️ वर्ष 2007 में बनी सिंचाई योजना से खेतों में नहीं पहुंचा पानी
◼️ पर्वतीय क्षेत्रों के सुदूर गांवों में अजीबोगरीब है हालात
◼️ ग्रामीणों ने लगाया उपेक्षा का आरोप

((( टीम तीखी नजर की रिपोर्ट)))

पर्वतीय क्षेत्रों के सुदूर गांवो में विभागीय योजनाओं के हाल भी अजब गजब है। लाखों करोड़ों की योजनाएं तो तैयार कर दी जाती है पर गांव के लोगों को लाभ ही नहीं मिल पाता। अल्मोड़ा हल्द्वानी हाईवे पर नावली क्षेत्र में कोसी नदी पर बनी सिंचाई योजना के हालात भी कुछ ऐसी ही हकीकत बयां कर रहे हैं। योजना के बावजूद करीब डेढ़ सौ से ज्यादा धरतीपुत्र पिछले कई वर्षों से सिंचाई के पानी की बूंद-बूंद को तरस रहे है।
वर्ष 2007 में अल्मोड़ा हल्द्वानी हाईवे पर नावली क्षेत्र में कोसी नदी पर करोड़ों रुपये की लागत से समीपवर्ती जनता, बोहरु तथा वलनी गांव के सैकड़ों काश्तकारों के खेतों तक पानी पहुंचाने को लिफ्ट सिंचाई योजना तैयार की गई। उम्मीद थी की किसान लाभान्वित होगे पर विभागीय अनदेखी से महज वलनी गांव में ही सिंचाई का पानी पहुंच पाया। हालांकि जनता व बोहरु गांव तक भी सिंचाई योजना के पाईप पहुंचा दिए गए पर टैंक ना होने से सिंचाई का पानी खेतों तक नहीं पहुंच पाया। सीधे पाइप खेतों तक पहुंचने से इतना तेज पानी गिरा कि खेत खस्ताहाल हो तो चले गए। तेज बहाव से पानी आने से कई किसानो के खेत बर्बाद हो गए। परेशान ग्रामीणों ने सिंचाई करनी बंद कर दी। ग्रामीणों का आरोप है कि कई बार गांव में टैंक बनाने की मांग उठाई गई पर कोई सुनवाई नहीं हुई। 15 वर्ष होने के बावजूद किसान सिंचाई के लिए बूंदबूंद पानी को मोहताज हो रहे हैं। योजना के बनने से किसानों को उम्मीद जगी थी कि अब वर्षा आधारित खेती से मुक्ति मिल सकेगी पर हालात आज भी जस के तस हैं। सब्जी उत्पादक जनता व बहरु गांव के काश्तकार आज भी वर्षा आधारित खेती पर निर्भर है। बारिश होने पर उपज की बेहतर पैदावार हो जाती है। बारिश ना होने पर मायूसी हाथ लगती है। ग्रामीणों बताते हैं कि गांव में गोभी, शिमला मिर्च, टमाटर, मूली की बंपर पैदावार होती है पर सिंचाई ना होने से उपज चौपट हो रही है। ग्राम प्रधान महेंद्र रावत , कास्तकार कुंवर सिंह, रुप सिंह, दलीप सिंह, राजेंद्र सिंह, पान सिंह, ईश्वर सिंह, लक्ष्मण सिंह, बिशन सिंह, पूरन सिंह आदि ने संबंधित विभाग पर गांव की उपेक्षा का आरोप लगाया है। दो टूक चेतावनी दी है कि यदि जल्द टैंक निर्माण ना हुआ तो ग्रामीण सड़क पर उतरने को बाध्य होंगे।