= गांवो के लोग लगातार जूझ रहे समस्याओं से
= चुनाव के वक्त नेताओं को आती है समस्याओं की याद
= समस्याओं का दिया जाता है आश्वासन पर आज भी जड़ है समस्याएं

((( गरमपानी डेस्क की रिपोर्ट)))

इसे उत्तराखंड प्रदेश की गांवो के लोगो की बदकिस्मती कहे या कुछ और पर यह सौ फ़ीसदी सच है। राज्य गठन के बाद से ही सूदूर गांवो के लोग समस्याओं से जूझ रहे है। लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव हमेशा से गांवो के लोगो को समाधान का भरोसा दिलाया जाता है पर समस्याएं आज भी जस की तस है। समस्याओं से परेशान गांवो के लोगो के अंदर गुस्से का ज्वालामुखी धधक रहा है।
पृथक उत्तराखंड राज्य बनने के 21 वर्ष बाद भी सुदूर गांवों में समस्याएं जस की तस है। प्रत्येक विधानसभा तथा लोकसभा चुनावों में समस्याओं के समाधान के लुभावने वादे किए जाते हैं पर समस्याएं आज भी जड़ है। सत्ता सुख के लालच में दावे व वादे भुला दिए जाते हैं गांवों के लोग समस्याओं से जूझ रहे हैं कहीं पेयजल संकट तो कहीं स्वास्थ्य व बेहतर शिक्षा के लिए लोग गांव छोड़ने को मजबूर हैं। गांव में रह रहे लोग बमुश्किल गुजर-बसर कर रहे हैं। अधिकांश गांवों में बुजुर्ग ही शेष रह गए हैं। बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार के लिए युवा तेजी से गांव छोड़ रहे हैं जो युवा गांव में रह गए हैं उन्हें राजनीति का मोहरा बनाया जा रहा है। ग्रामीणों की मानें तो वादे और दावे तो बड़े बड़े होते हैं पर चुनाव बीतने के बाद उन दावों और वादों का पता ही नहीं चलता और गांवों के लोगों को उन्हीं के हाल पर छोड़ दिया जाता है। सड़क व बेहतर सुविधाओं के नाम पर बड़े-बड़े झांसे भी दिए जाते हैं पर समय बीतने के साथ ही सब कुछ भुला दिया जाता है। सड़कें ऐसी हैं कि उनमें पैदल चलना ही मुनासिब नहीं है। अस्पतालों में चिकित्सकों की कमी है वही रोजगार के लिए कोई ठोस कदम उठाने की जहमत ही नहीं उठाई जा रही। बहरहाल फिर विधानसभा चुनाव नजदीक हैं रणभेरी बज चुकी है। चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है अब देखना है कि गांव के लोगों को कैसे एक बार फिर लुभावने वादों के साथ वश में किए जाने की तैयारी की जाती है।