water-problem

=पेयजल के कारण पलायन को मजबूर हुए ग्रामीण
= सरकार व संबंधित विभाग पर लगाया उपेक्षा का आरोप


(((सुनील मेहरा/पंकज भट्ट की रिपोर्ट)))

गांव के अंतिम छोर तक विकास योजनाओं को पहुंचाने के लाख दावे किए जाए पर धरातल में दावे खोखले साबित हो रहे हैं। पेयजल के कारण लोग लगातार गांव छोड़ रहे हैं। चापड़ गांव के तोक अनुसूचित जाति बस्ती में करीब पैतीस से ज्यादा परिवार गांव से जा चुके हैं। गांव में दस – बारह परिवार ही शेष है।
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद उम्मीद थी कि लोगों को पहाड़ में पहाड़ जैसी समस्याओं से निजात मिलेगी। शांत समझे जाने वाले गांवों में आसानी से जीवनयापन कर सकेंगे। सुविधाएं भी मिलेंगी। पर गांवों में मूलभूत सुविधाओं का ही अकाल पड़ गया है।सुविधाएं महज नगरों शहरों तक सिमट कर रह गई है । गांवो का कोई सुध लेवा है ही नहीं। दावो, आश्वासन व वादों के अलावा ग्रामीणों के नसीब में कुछ भी नहीं। भुजान – बलियाली मोटर मार्ग पर स्थित चापड़ गांव के अनुसूचित जाति बस्ती में कभी ग्रामीण आसानी से जीवन यापन कर रही थे पर अब गांव में रहना टेढ़ी खीर बन चुका है। गांव को रहेली गांव पेयजल योजना से पानी की आपूर्ति की जाती है पर धीरे-धीरे विभागीय अनदेखी व उपेक्षा के चलते ग्रामीणों को समुचित पानी की आपूर्ति नहीं हो रही। आरोप है कि कभी महीनो तक पानी नसीब नहीं होता। ऐसे में करीब तीन किलोमीटर दूर जाकर कुरुटी गधेरे से पानी ढोना पड़ता है जो जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। ग्रामीण कहते हैं कि कभी गांव में अच्छे खासे परिवार थे। करीब पैतीस से ज्यादा परिवार महज पानी की खातिर गांव छोड़ कर चले गए हैं। गांव में महज दस से बारह परिवार शेष हैं वह भी अब बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं ऐसे में कब गांव वीरान हो जाए कहा नहीं जा सकता। स्थानीय लोगो के अनुसार कई बार आवाज उठाए जाने के बावजूद कोई सुनवाई नहीं होती। हमेशा ग्रामीण ठगे जाते हैं ग्रामीणों ने नेताओं व अधिकारियों पर उपेक्षा व मनमानी का आरोप लगाया है गांव से हो रहे पलायन को सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। कहा है कि यदि सरकार गांव की ओर ध्यान देती तो आज लोग गांव छोड़ने को विवश नहीं होते।