= स्वाभिमानी कार्यकर्ता होने लगे है असहज
= किसके लिए मांगे वोट किसका करे विरोध
= जिनको पांच साल विकास विरोधी बताया वहीं एक साथ कर रहे मंच साझा
= रंग बदलने वालो को सबक सिखाने के इंतजार में है जनता

(((विरेन्द्र बिष्ट/फिरोज अहमद/सुनील मेहरा की रिपोर्ट)))

राजनीति भी अजब गजब दिन दिखलाती है। उत्तराखंड प्रदेश की राजनीति में भी बदलते दांवपेच ठंड में गर्मी बढाने का काम कर रहे है। खास बात यह है की कभी दूसरे दल के नेताओ को पानी पी पी कर कोसने वाले नेता आज एक मंच पर साथ दिखाई दे रहे है। नेता तो मंच साझा कर ले रहे है पर कार्यकर्ताओं के लिए बडी़ मुसीबत खडी़ हो गई है। पहले जिस दल के लोगो का खुलकर विरोध किया अब उन्ही के साथ जयकारे लगाने पड़ रहे है। पर इतना साफ है की चुप बैठी जनता शांत मन से सब कुछ देख रही है ठिक समय पर अपने पत्ते खोल रंग बदलने वालो को सबक सिखाने का इंतजार कर रही है।

सत्ता सुख का लालच प्रदेश की राजनीति में सिर चढ़ कर बोल रहा है।सत्ता तक पहुंचने को नेता किसी भी हद तक जाने को तैयार है कभी जिन विरोधियों पर खूब तंज कसे,विकास विरोधी ठहराया आज वही खासमखास हो चुके है।जिस जनता ने सिर आंखो पर बैठाया उनकी समस्याएं कोई मायने नही रखती। कार्यकर्ता भी खुद हो असहज महसूस कर रहे है। जिनका हमेशा विरोध किया आज उनके साथ मिलकर उनके दल के जयकारे लगाना मजबूरी बन चुका है।चुनाव की रणभेरी बज चुकी है।अब देखना रोचक होगा की क्या आखरी समय पर फिर टीम बदल सकती है। पाला बदलने में देर नही लग रही। पर इतना साफ है की जनता जर्नादन रंग बदलते जरुर देख रही है पाला बदलने को सत्ता का लालच करार दे रही है। जनता किसे सत्ता तक पहुंचाती है या फिर मैदान से किसे बाहर करती है यह भविष्य पर निर्भर है।