🔳 अभिनय को सूदूर गांवों से भी पहुंचते थे कलाकार
🔳 शानदार अभिनय पर इनाम में मिलती पैन व रुमाल
🔳 एक आना दो आना देते थे दर्शक, दस रुपये मानी जाती थी सबसे बड़ी धनराशि
🔳 रामभक्तो में रामलीला मंचन की धुन होने से बन गई क्षेत्र की सुप्रसिद्ध रामलीला
🔳 सूदूर क्षेत्रों से सैकड़ों लोग पहुंचकर बढ़ाते हैं कलाकारों व समिति का उत्साह
🔳 तलवार व कांच में केशव दत्त का शानदार नृत्य देखने उमड़ती थी भीड़
[[[[[[ टीम तीखी नजर की रिपोर्ट]]]]]]]

कोसी घाटी स्थित गरमपानी क्षेत्र में होने वाली रामलीला का स्वर्णिम इतिहास रहा है। वर्ष 1947 में पहली बार क्षेत्र में रामलीला मंचन का श्रीगणेश हुआ। सुविधाओं के अभाव में भी रामलीला मंचन के प्रति खासा उत्साह होने पर गरमपानी में होने वाले मंचन का लुफ्त उठाने सूदूर गांवों से कई किमी की पैदल दूरी तय कर गांवों के लोग रामलीला का लुत्फ उठाने पहुंचते। खास बात यह है की तब अभिनय में रुची रखने वाले कलाकार तक दूर गांवों से यहां पहुंचकर रामलीला में अभिनय करते। दर्शक कलाकारों को फाउंटेन पैन, रुमाल बतौर इनाम में देते।
गरमपानी में होने वाली रामलीला क्षेत्र की सुप्रसिद्ध रामलीलाओं में शुमार है। रामलीला का लुत्फ उठाने भारी भीड़ रामलीला मैदान में पहुंचती है। शुरुआती वर्षों में भी गरमपानी की रामलीला का स्वर्णिम दौर रहा है हालांकि तब सुविधाओं की बेहद कमी थी बावजूद उत्साह में कोई कमी नहीं थी। मंचन से जुड़े कलाकार व समिति सदस्य पूरे मनोयोग से शानदार मंचन की प्रस्तुति देते। गरमपानी की ऐतिहासिक रामलीला की नींव वर्ष 1947 में रखी गई। आयोजन समिति से जुड़े बुजुर्ग भुवन चंद्र त्रिपाठी पुराने दौर को याद कर बताते हैं की श्रीराम कार्य को लेकर गजब की धुन रहती थी। सूदूर गांवों से भी लोग मंचन में प्रतिभाग को गरमपानी पहुंचते। कोई मेहनताना नहीं लिया जाता था। कलाकारों के दमदार प्रदर्शन पर दर्शक कलाकारों को ईनाम के तौर पर रुमाल, पैन, एक आना, दो आना देते। दस रुपये की ईनामी राशि सबसे बड़ी धनराशि मानी जाती थी।

सुविधाओं के अभाव में शुरु हुआ रामलीला मंचन का सफर

कोसी घाटी की सुप्रसिद्ध रामलीला मंचन का सफर सुविधाओं के अभावों में शुरु हुआ। सुविधाएं जुटाना आयोजन समिति के लिए टेढ़ी खीर होती है। घरों से साड़ियां, धोती व अन्य सामान लाकर बामुश्किल मंचन करवाया जाता। समिति को अधिक खर्चा न उठाना पड़े इसके लिए कलाकार चाय तक नहीं पीते। कई दिन कलाकार अभिनय करने तक व्रत रखते और अभिनय के बाद घर जाकर ही भोजन करते।

आज भी जुबां पर है गुरु केशव दत्त का सहयोग

रामलीला मंचन में अपने शानदार सहयोग के कारण गरमपानी में दुकान चलाने वाले केशव दत्त का सहयोग व अभिनय आज भी लोगों को याद है। भुवन चंद्र बताते हैं की केशव दत्त हमारे गुरु रहे। अभिनय से लेकर मंचन तक में उनका सहयोग आज भी याद है। मंचन में तबले व हारमोनियम में ताल देने वाले उस्तादों को तालीम से लेकर मंचन तक केशव दत्त अपने घर पर भोजन करवाते। कलाकारों को भी उम्दा तालीम देते। यही नहीं अंतिम दिन राजतिलक के दिन तलवार व कांच में केशव दत्त का नृत्य देखने बड़ी संख्या में लोग गरमपानी पहुंचते।

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