= पंचायत गठन से लगातार आंदोलन के रास्ते पर हैं ग्राम प्रधान
= भारी न पड़ जाए प्रधानों की अनदेखी
= कभी देहरादून तो कभी ब्लॉक पहुंच रहे ग्राम प्रधान
= विकास कार्य भी हो रहे प्रभावित
= दो पूर्व सीएम भी नहीं कर पाए नाराजगी दूर
(((विशेष संवाददाता की स्पेशल रिपोर्ट)))
गांव की सरकार की किस्मत प्रदेश सरकार से रूठी रूठी सी है । इसे भाग्य कहें या दुर्भाग्य पंचायत गठन से अब तक लगातार मांगों की अनदेखी से नाराज ग्राम प्रधान आंदोलन की राह पर है। पहले देहरादून तक पहुंचे ग्राम प्रधान अब ब्लॉकों में तालाबंदी में जुटे हुए हैं। 12 सूत्रीय मांगों को लेकर ग्राम प्रधानो का पारा चढ़ा हुआ है। ग्राम प्रधानों के सब्र का बांध भी अब टूटता जा रहा है। इसके बावजूद सत्ता के गलियारों तक ग्राम प्रधानों की आवाज नहीं पहुंच रही।
गांव की सरकार के गठन तक सब कुछ ठीक रहा पर एकाएक गुस्सा बढ़ता ही गया। प्रदेश सरकार ने थामने की भी कोशिश की पर अनदेखी से नाराज ग्राम प्रधान आंदोलन पर उतर आए। पहले जल जीवन मिशन पर अनदेखी का आरोप लगा आंदोलन की राह पकड़ ली और अब 12 सूत्रीय मांगों को लेकर एक बार फिर आंदोलन की राह पर निकले हुए हैं। हैरत की बात यह है कि आखिरकार दो पूर्व सीएम प्रधानों को क्यो नही मन पाए। पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत तथा तीरथ सिंह रावत प्रधानों की समस्याओं का हल नहीं निकाल सके। अब नए मुखिया के कुर्सी संभालने के बाद कुछ उम्मीद बढ़ी हैं पर ग्राम प्रधान पीछे हटने को तैयार नहीं है। लगातार तालाबंदी सरकार विरोधी नारे से ब्लॉक मुख्यालय गूंज रहे हैं। प्रधानों के आंदोलन की राह में निकलने से कहीं न कहीं विकास कार्य प्रभावित होने लाजमी है। पर बड़ी बात यह भी है कि आखिरकार गांव की सरकार की नाराजगी का हल क्यों नहीं निकाला जा रहा है। रह रह कर सवाल उठ रहा है कि क्या यह प्रदेश आंदोलन प्रदेश बनकर रह गया।
अनदेखी से बढ़ रही नाराजगी
प्रदेश भर में ग्राम प्रधान ने आंदोलन का बिगुल बजाया हुआ है। मांगों को लेकर ग्राम प्रधान आंदोलनरत हैं। पीछे हटने को कतई तैयार नहीं। लगातार आंदोलन पर चल रहे ग्राम प्रधान आश्वासनो से खासे नाराज दिख रहे हैं। कोरोना संक्रमण के शुरुआती चरण में ग्राम प्रधानों ने पूरे मनोयोग से पंचायतों में कार्य किया। प्रदेश सरकार के एक एक आदेश का पालन किया गया पर अब जब ग्राम ग्राम प्रधानों ने पंचायत के हित की बात उठाई है तो हर बात अनसुनी कर दी जा रही है।