= गांव गांव दिख रहा तबाही का मंजर
= कोरोना से नुकसान की भरपाई भी नही हो सकी थी की आपदा ने जख्म कर दिए हरे
= अब कैसे चलेगी जिंदगी की गाडी़ बडा़ सवाल ?

(((टीम तीखी नजर की रिपोर्ट)))

मूलाधार बारिश के बाद जगह-जगह उठे जलप्रलय ने लोगों का सब कुछ तबाह कर दिया। कोरोना से हालात सुधरे भी नहीं थे कि आपदा ने सब कुछ बर्बाद कर के रख दिया। अब कैसे जिंदगी की गाड़ी आगे बढ़ेगी यह बड़ा सवाल है ? क्या सरकारी मदद से कुछ सहारा मिलेगा या फिर आपदा प्रभावितों को खुद ही जिंदगी की गाड़ी आगे बढ़ानी पड़ेगी।
लगातार दो वर्षो से कोरोना संकट झेल रहे लोग बामुश्किल दोबारा सब कुछ ठीक होने की उम्मीद लेकर आगे बढ़ रहे थे कि 18 व 19 अक्टूबर की रात मूसलाधार बारिश के बाद उठे जलप्रलय ने उम्मीदों पर पानी फेर दिया। जगह-जगह तबाही के मंजर साफ देखे जा सकते हैं। सब कुछ उथल पुथल हो चुका है। रोजगार के साधन चौपट है। सड़क, रास्ते, घर, मकान, जलप्रलय से तबाह हो चुका है। जिंदगी भर की मेहनत से बचाई गई जमा पूंजी से खड़े किए गए आवासीय मकान भरभरा कर ध्वस्त हो चुके हैं। रह-रहकर यही सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या सरकार दो कदम आगे बढ़कर आपदा प्रभावितों को राहत दिलाएगी या फिर आपदा प्रभावितों को खुद ही सब कुछ भुला कर अपनी जिंदगी की गाड़ी को आगे बढ़ाना पड़ेगा। बरहाल सप्ताह भर बीतने के बावजूद अभी कोई ठोस उम्मीद नजर नहीं आ रही है ।