🔳बलिदानी चंदन ने दिया था दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब
🔳पाकिस्तानी विमानों की बमबारी में मां भारती की आन बान शान को किया सर्वोच्च न्यौछावर
🔳शहीद के गांव को पहुंचने वाला रास्ता कर रहा तंत्र की बेरुखी की हकीकत बयां
🔳बदहाल रास्ते पर आवाजाही को मजबूर हैं शहीद के स्वजन व गांव के लोग
{{{{ टीम तीखी नजर की रिपोर्ट}}}}

मां भारती की आन-बान शान को अपना सर्वोच्च न्यौछावर कर देने वाले बलिदानी सपूत के पैतृक गांव को जाने वाले रास्ते तक की तंत्र आज तक सुध नहीं ले सका। रण भूमि में अपने पराक्रम का लोहा मनवाने वाले बलिदानी सपूत की मां ने अपने लिए कभी कुछ नहीं मांगा। महज, गांव तक सड़क, अस्पताल को शहीद का नाम देने की इच्छा जताई पर मुराद पुरी ने हो सकी‌। हां इंटर कॉलेज का नाम जरुर बलिदानी सपूत के नाम पर हो गया।
बेतालघाट ब्लॉक के सिमलखा गांव निवासी जांबाज लांसनायक चंदन सिंह भंडारी ने 19 अगस्त 1999 को कारगिल युद्ध में कई दुश्मन घुसपैठियों को ढेर कर दिया। जांबाज चंदन ने अपने शोर्य व पराक्रम कई दुश्मनों को मार गिराया। पाकिस्तानी विमानों की बमबारी के दौरान बंकर से दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दे रहा मां भारती का लाल शहीद हो गया। महज 28 वर्ष की आयु में शहीद चंदन सिंह भंडारी अमर हो गए। वर्ष 1986 में भारतीय सेना में भर्ती इस बहादुर सैनिक की मां पार्वती देवी ने पैतृक गांव तक सड़क, इंटर कॉलेज व एलोपैथिक अस्पताल का नाम शहीद बेटे की याद में रखने की मंशा जताई मगर तंत्र सुध नही ले सका। महज इंटर कॉलेज का नाम शहीद के नाम पर कर इतिश्री दी गई।उपेक्षा से आहत तीन वर्ष पूर्व पार्वती देवी भी चल बसी। शहीद के पैतृक गांव को जाने वाला रास्ता आज जर्जर हालात पर पहुंच चुका है। देश के लिए प्राण न्यौछावर कर देने वाले शहीद के घर तक आवाजाही ही परेशानी का सबक बन चुकी है। पैतृक क घर में महज शहीद के भाई भोपाल सिंह का परिवार रहकर उनकी यादों को संजोए हुए हैं। शहीद का दूसरा भाई पूरन सिंह भंडारी भी खेतीबाड़ी कर गुजर बसर कर रहे हैं। बड़े भाई खीम सिंह सीआरपीएफ में बतौर सब इंस्पेक्टर रांची में तैनात होकर देश सेवा में जुटे हुए है।

गांव के युवाओं को सेना भर्ती की ट्रेनिंग देना चाहता था जांबाज

जांबाज चंदन सिंह अवकाश पर आने के बाद गांव के युवाओं को फौज में भर्ती के लिए ट्रेनिंग देने की इच्छा रखता था उसमें पुलिस की परीक्षा भी पास कर ली थी मगर फौज को ही चुना और और आखरी सांस तक देशसेवा में जुटा रहा। भाई पूरन व चाचा ईश्वर सिंह बताते हैं कि जब भी चंदन छुट्टियों पर गांव आता तो हमेशा देश के लिए कुछ कर गुजरने की बातें करता। हमेशा उसके मन में देश प्रेम की भावना रहती। वर्तमान में शहीद चंदन के भाई पूरन बेरोजगार है जबकि दूसरे भाई भोपाल सिंह का कुछ वर्ष पूर्व निधन हो चुका है। दोनों भाइयों के परिवार खेती-बाड़ी से गुजर कर रहे हैं। वह गरीबी से दुखी नहीं है पर तंत्र का शहीद को भूलने की पीड़ा मन में है। शहीद के गांवों को जोड़ने वाले मार्ग की दुर्दशा से मायूस हैं।