= घर पर अकेला होने से कोई नहीं है सुध लेवा
= अच्छी शिक्षा रोजगार के लिए बच्चे हुए मां बाप से दूर
= अस्पताल पहुंचने वाले बुजुर्गों की चिकित्सक करती है काउंसलिंग
(((विरेन्द्र बिष्ट/फिरोज अहमद/दलिप सिंह नेगी की रिपोर्ट)))
गांवों में अकेले रहने वाले बुजुर्गों का अकेलापन अंदर ही अंदर उन्हे कमजोर कर रहा है। बच्चों के घर से बाहर रहने तथा अकेले रहने वाले बुजुर्ग अपना दुख नहीं बांट पा रहे। ऐसे में समीपवर्ती अस्पताल पहुंच रहे हैं। जहां चिकित्सक उनकी काउंसलिंग कर उनका साहस बढ़ा रही है बिना दवा के ही जिंदगी जीने की ताकत दी जा रही है।
पर्वतीय क्षेत्रों में पलायन से गांव के गांव खाली हो चुके हैं।अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए युवा शहरी क्षेत्रों को रुख कर रहे हैं। ऐसे में गांव में महज बुजुर्ग मां-बाप ही रह गए हैं। कई गांव ऐसे हैं जहां सिर्फ बुजुर्ग ही शेष है। अधिकतर युवा पीढ़ी गांवों से शहरी क्षेत्रों को जा चुकी हैं। खेतीबाड़ी चौपट होने से खेत बंजर हो गए हैं। घर में कोई भी ना होने से बुजुर्गों पर अकेलापन हावी होता जा रहा है। अल्मोड़ा हल्द्वानी हाइवे से सटे तमाम गांवों के बुजुर्ग पीएचसी काकडी़घाट में अकेलेपन की दवा ढूंढने पहुंच रहे हैं ऐसे में चिकित्सक उनकी काउंसलिंग करते हैं उनके दुख दर्द को भी सुना जाता है। चिकित्सक के मुताबिक बुजुर्ग मां-बाप बताते हैं कि अब बच्चे सुनते ही नहीं। उन्हें अकेला घरों में छोड़ दिया गया है यहां तक कि कई लोग बताते हैं कि दवा तक के लिए बच्चे पैसे नहीं भेजते । चिकित्सक के मुताबिक बुजुर्ग कई बातें करके अपना मन हल्का करने का प्रयास करते हैं। ऐसे में उनकी काउंसलिंग कर उन्हें साहस बढ़ाया जाता है। पर इतना साफ है कि जिन मां बाप ने बच्चों के लिए हाड़तोड़ मेहनत कर अपनी जिंदगी कठिनाइयों में बिताई आज वही बच्चे मां बाप से दूर होते जा रहे हैं।