= खटीमा विधायक के नाम पर लगी अंतिम मुहर
= भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने पुष्कर सिंह धामी के नाम का ऐलान कर चौंकाया
= समय कम पर चुनौतियां अपार


((( विशेष संवाददाता की स्पेशल रिपोर्ट)))

उत्तराखंड के सियासी गलियारों में उठे तूफान के बाद आखिरकार खटीमा से विधायक पुष्कर सिंह धामी को प्रदेश के मुखिया की कमान दे दी गई है। अब पुष्कर सिंह धामी प्रदेश के 11 वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे। भाजपा ने युवा नेतृत्व पर दांव खेल आगे की रणनीति भी तैयार कर ली है। अब देखना होगा कि नए मुख्यमंत्री कैसे प्रदेश को बुलंदियों तक पहुंचाएंगे। हालांकि उनके पास बहुत कम समय होगा।
उत्तराखंड प्रदेश के सीएम की कुर्सी पर अब खटीमा के विधायक पुष्कर सिंह धामी विराजमान होंगे। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने आखिरकार पुष्कर सिंह धामी के नाम पर मोहर लगाई। सूत्रों के अनुसार हालांकि अभी एक गुट नाराज माना जा रहा है। छह माह के शासन में अब नए मुख्यमंत्री के सामने तमाम चुनौतियां भी होंगी। कोरोना की तीसरी लहर के ठोस प्रबंधन, आपदा, अफसरशाही समेत तमाम चुनौतियों से निपटना होगा। वरिष्ठ नेताओं तथा कैबिनेट गठन से लेकर मंत्रिमंडल चलाना भी किसी चुनौती से कम ना होगा। अब बड़ा सवाल यह है कि खटीमा से विधायक पुष्कर सिंह धामी प्रदेश को कितनी ऊंचाइयों तक ले जाते हैं।

21 साल में दस मुख्यमंत्रियों ने किया राज

21 साल के उत्तराखंड प्रदेश ने अब तक दस मुख्यमंत्रियों का दौर देख लिया। अब 11वें सीएम के रूप में पुष्कर सिंह धामी सामने है। पुष्कर सिंह धामी का प्रदर्शन आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी का भविष्य भी तय करेगा। खास बात यह है कि क्या नए सीएम दिल्ली के इशारे पर सरकार चलाएंगे या उनके खुद के निर्णय प्रभावी होंगे।

विपक्षियों को मिल गया मुद्दा

प्रचंड बहुमत होने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी ने वर्तमान तक तीन सीएम प्रदेश को दे दिए है। विपक्षी पार्टियों को भी बैठे-बिठाए मुद्दा मिल गया। विपक्षी पार्टियों ने भाजपा को मुख्यमंत्री तैयार करने की फैक्ट्री करार दे दिया तो वही पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इशारों ही इशारों में कांग्रेस से भाजपा में शामिल तथा सीएम की दौड़ में रहे एक वरिष्ठ नेता पर भी तंज कर दिया है।

समस्या जस की तस, दौड़ मंत्री व सीएम की कुर्सी तक

पृथक राज्य गठन के बाद सरकारें आती रही बदलती रही। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर तक कई लोग पहुंचे। मुख्यमंत्री बने और उतरते चले गए। पर बड़ा सवाल रह गया कि आखिरकार उत्तराखंड प्रदेश कहां पहुंच गया। क्या गांव तक रोजगार के साधन मुहैया करा दिए गए। क्या पृथक राज्य की लड़ाई लड़ने वाले आंदोलनकारियों के सपने पूरे करने को कोई ठोस उपाय किए गए। गांवों में आज भी स्वास्थ्य सेवाएं वेंटिलेटर पर हैं। अच्छे स्कूल ना होने से लोग पलायन को मजबूर है। पानी बड़ी समस्या बनती जा रही है। गांव के गांव खाली होते जा रहे हैं। पर मुद्दे गायब है। दौड़ है तो बस मंत्री व सीएम की कुर्सी तक।