= पत्ते को पान का आकार दे रखी जाती है सुप्रसिद्ध सिगोडी़ मिठाई
= अल्मोड़ा व लोधिया से मालू का पता लेने कोसी घाटी पहुंचते हैं व्यापारी
= मालू की पैदावार को जौरासी व वलनी का मौसम है अनुकूल
(((कुबेर सिंह जीना/अंकित सुयाल की रिपोर्ट)))
अल्मोड़ा की सुप्रसिद्ध सिंगौडी़ मिठाई भले ही देश दुनिया में अलग पहचान रखती हो पर मिठाई को सुरक्षित रखने के लिए लगाया जाने वाला पत्ता कोसी घाटी के जौरासी क्षेत्र की भी पहचान है। अल्मोड़ा के व्यापारी जोरासी क्षेत्र में मालू का पत्ता लेने पहुंचते है।
सिंगौडी़ मिठाई सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा की याद ताजा कर देती है। अल्मोड़ा की बाल मिठाई व सिंगोड़ी देश दुनिया में सुप्रसिद्ध है। लोग दूर-दराज सिंगोडी़ व बाल मिठाई ले जाना नहीं भूलते। यही नहीं कई लोग मिठाई को विदेशों तक भी भेजते हैं। पर खास बात यह है कि जिस सिंगोडी़ को जिस मालू के पत्ते में रखा जाता है वह अल्मोड़ा हल्द्वानी हाईवे पर जौरासी क्षेत्र में बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। कोसी नदी पार वलनी तथा हाइवे से सटे जौरासी के जंगल में मालू के हरे भरे पेड़ है। अल्मोड़ा तथा लोधिया क्षेत्र से व्यापारी मालू का पत्ता लेने के लिए जौरासी पहुंचते हैं। कोसी नदी पार कर मालू के पत्ते तोड़ अल्मोड़ा ले जाया जाता है। जहां साफ-सफाई के बाद पत्ते में सिगोंडी़ मिठाई रखी जाती है। गांव के लोगों का कहना है कि पत्तों को पान का आकार दें उसमें सिंगोड़ी मिठाई रखी जाती है। ग्रामीणों की मानें तो पत्ते में मिठाई काफी दिन तक खराब भी नहीं होती। वही पत्तों का इस्तेमाल कई जगह भोजन थाल के रूप में भी किया जाता है। मालू के पत्तो का ईस्तमाल ग्रामीण मवेशियों के लिए चारे के रुप में भी करते है। जौरासी क्षेत्र में मालू के तमाम पेड़ है पर आज तक इन पेड़ों को संरक्षित करने की जहमत नहीं उठाई गई है। ग्रामीणों ने पेड़ों को संरक्षित किए जाने की मांग उठाई है ताकि भविष्य में लोगों को इससे रोजगार भी उपलब्ध हो सके।