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कुमाऊं व गढ़वाल के दूरस्त क्षेत्रो में रसोई गैस पहुंचा रहे वाहन चालक
होटल न खुलने से कर रहे परेशानी का सामना
कई बार भूखे ही नापनी पड़ रही सैकड़ों किमी दूरी

गरमपानी डेस्क : सुदूर पहाड़ों में लोगों की भूख मिटाने को सैकड़ों किलोमीटर की दूरी नापनी पड़ रही हैं पर खुद ही भूखे रह जा रहे हैं। हालात यह है कि उन्हें सड़क किनारे ही खाना तैयार कर सड़क में बैठकर ही भोजन करना मजबूरी बन चुका है। खुले में खाना खाने से संक्रमण का खतरा भी बढ़ रहा है बावजूद कोई सुध लेवा नहीं है।

जी हां बात हो रही है पर्वतीय क्षेत्रों में मोटाहल्दु गैस प्लांट से रसोई गैस सिलेंडर लेकर सैकड़ों किलोमीटर पिथौरागढ़, धारचूला, बागेश्वर, मुनस्यारी, कपकोट, गोपेश्वर आदि तमाम क्षेत्रों में रसोई गैस पहुंचाने वाले वाहन चालकों का कोई सुध लेवा नहीं है। होटल, रेस्टोरेंट रेस्टोरेंट बंद होने से वाहन चालकों के आगे भोजन का बड़ा संकट पैदा हो गया है। ऐसे में खुद ही सड़क किनारे खाना बना रहे हैं। वाहन में रसोई गैस से भरे सिलेंडर होने से उन्हें करीब सौ मीटर दूर खाना बनाना पड़ता है। बारिश होने पर तो भूखे रहना मजबूरी बन चुका है।ध वाहन चालक दलिप सिंह,जगत सिंह, कृपाल सिंह का कहना है कि उनका कोई सुध लेवा नहीं है दो टाइम के खाने के भी लाले पड़ गए हैं।

नदी के पानी से बुझा रहे प्यास

वाहन चालक जब मोटहल्दु गैस प्लांट से रसोई गैस लेकर सुदूर पर्वतीय क्षेत्रों को रवाना होते हैं तो उनके आगे एक नहीं बल्कि तमाम समस्याएं खड़ी हो जाती हैं। वाहन चालकों के अनुसार उन्हें प्राकृतिक जल स्रोतों से पानी भी नहीं भरने दिया जा रहा। लोग कहते हैं कि उनके पानी भरने से संक्रमण फैल जाएगा। इधर उधर से यात्रा करके आ रहे हैं। ऐसे में मजबूरी में वाहन चालक नदियों से पानी लेकर प्यास बुझाने को मजबूर है।

खिचड़ी ही बन रही ताकत

होटल रेस्टोरेंट न खुलने से वाहन चालक कई दिनों खिचड़ी पर ही निर्भर रहते हैं। वाहन चालकों के अनुसार जल्दी बन जाने वाली खिचड़ी व मैगी से ही कई दिनों तक पेट भरा जाता है परेशानी इतनी बढ़ जा रही है कि कभी दिन भर पानी पीकर ही दिन काटना पड़ रहा है बाद में बमुश्किल दूरदराज जंगलों आदि में खिचड़ी बना कर पेट भर रहे हैं। खिचड़ी ही उनकी ताकत बन गई