काफल उत्पादक किसानों को लगातार दो वर्षों से हो रहा नुकसान
पर्यटकों की गतिविधि शून्य होने से बिक्री ठप
वनाग्नि ने कई गांवों में पहले ही खाक कर दिए काफल के पेड़
गरमपानी : बीते दिनों जंगलों में लगी आग ने मीठे व रसीले काफल की मिठास छीन ली।बची कुची कसर कोविड कर्फ्यू ने पूरी कर दी है। जहां प्रवासियों के हाथ से रोजगार चला गया है वही काफल व अन्य फलों का उत्पादन करने वाले फल उत्पादक काश्तकारों को भी खासा नुकसान उठाना पड़ रहा है। बाजार में पर्यटकों की आवाजाही शुन्य होने से काफल की बिक्री भी ठप हो गई है।
बेतालघाट ब्लॉक के तमाम गांवों में काफल की बंपर पैदावार होती है। हर वर्ष नैनीताल, हल्द्वानी, अल्मोड़ा, रानीखेत आदि क्षेत्रों में काफल उत्पादक किसान काफल बेचकर अच्छी खासी आजीविका कमाते। मार्च, अप्रैल, मई महीने में अच्छी खासी काफल की बिक्री बाजारों में होती। पर अब काफल उत्पादक किसान काफी परेशान है पहले जंगलों में लगी आग ने काफन के कई पेड़ों को चपेट में ले खाक कर दिया। बची खुची कसर अब कोविड कर्फ्यू ने पूरी कर दी है। ब्लॉक के पाडली, जाख बारगल, कफूल्टा, बजेडी़ आदि तमाम गांवो में काफल की बंपर पैदावार होती है पर बाजार में पर्यटक के ना होने से भी अब धरतीपुत्रों को वाजिब दाम नहीं मिल रहा। पहले 200 से 300 रुपये प्रति किलो तक बिक्री होती थी पर अब बेहतर दाम नहीं मिल रहे। उत्पादनभी शून्य ही है। पाडली गांव के काफल उत्पादक किसान देवेंद्र कुमार बताते हैं कि पिछले दो वर्षों से काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इस बार तो वनाग्नि ने कई पेड़ तक जलाकर खाक कर दिए है।