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= गांव से उपज को हाईवे तक पहुंचाने वाला रोपवे खस्ताहाल
= ग्रामीणों ने संबंधित विभाग पर लगाया उपेक्षा किए जाने का आरोप

(((पंकज नेगी/अंकित सुयाल/पंकज भट्ट की रिपोर्ट)))

पहाड़ों के अन्नदाताओं को लाभ दिलाने के लिए योजनाएं तो बनाई जाती हैं पर पहाड़ चढ़ते चढ़ते योजनाओं का दम फूल जाता है। हालात यह है कि देखरेख के अभाव में योजनाएं बदहाल हो जाती है। काश्तकारों की उपज को हाईवे तक पहुंचाने के लिए बनाया गया रोपवे बदहाल हालत में पहुंच गया है।
अल्मोड़ा हल्द्वानी हाइवे से सटे ज्याडी़ गांव के करीब सत्तर से ज्यादा काश्तकारों की उपज को हाईवे तक पहुंचाने के लिए वर्षो पूर्व कोसी नदी के समीप रोपवे का निर्माण किया गया। मकसद था कि किसानो की उपज को आसानी से हाईवे तक पहुंचाया जा सके। किसानों को सिर पर उपज को लाद गांव से दो किलोमीटर की दूरी तय कर हाईवे तक न लाना पडे़। रोपवे निर्माण के बाद किसानों को उम्मीद थी कि बड़ी समस्या से निजात मिलेगी। कुछ दिन कार्य करने के बाद सब कुछ चौपट हो गया। तकनीकी खराबी के चलते रोपवे कार्य नहीं कर पाया। कुछ दिन ग्रामीणों को लाभ तो मिला पर बाद में मायूसी हाथ लगी। ग्रामीणों ने उच्चाधिकारियों को मामले की सूचना दी पर कोई सुनवाई ना हो सकी। अनदेखी के अभाव में रोपवे धीरे-धीरे खस्ताहाल हो गया। वर्ष 2010 की आपदा में भी रोपवे को खासा नुकसान हुआ। अब हालात यह है कि किसानों को लाभ पहुंचाने के मकसद से बनाया गया रोपवे के चारों और झाड़ियां उग चुकी हैं। उपकरण भी बदहाली का शिकार हो चुके हैं। अब ग्रामीण इसका इस्तेमाल ही नहीं करते। मजबूरी में सिर पर उपज को रख दो किलोमीटर की दूरी तय कर हाईवे तक पहुंचाते हैं। स्थानीय महेश नैनवाल, पंकज सिंह, कमलेश नेगी, बालम, शंकर नैनवाल आदि के अनुसार कई बार रोपवे को दुरुस्त करने की मांग उठाई जा चुकी है पर कोई सुनवाई नहीं होती। गांव में तमाम पार्टियों के नेता पहुंचते हैं जिनके आगे भी मुद्दा उठाया जाता है पर कोई भी सुधलेवा नहीं है। ग्रामीणों ने तत्काल रोपवे दुरुस्त किए जाने की मांग उठाई है।