◼️ बातचीत को चयन करना पड़ता है विशेष स्थान
◼️ सिग्नल ना होने से परेशान है ग्रामीण
◼️ नौनिहाल भी पढ़ाई के लिए गांव से दूर दराज ऊंचाई वाले क्षेत्रों को करते हैं रुख

((( टीम तीखी नजर की रिपोर्ट)))

संचार क्रांति के इस दौर में ताडी़खेत ब्लाक की सीमा पर स्थित बेतालघाट ब्लॉक के कालाखेत गांव में मोबाइल आज भी शोपीस बने हुए हैं। मोबाइल का इस्तेमाल करने के लिए ग्रामीणों को विशेष जगह का चयन करना पड़ता है। आपातकालीन स्थिति में समस्या दोगुनी हो जाती है। नौनिहालों को भी पढ़ाई के लिए मोबाइल लेकर ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जाना पड़ता है। गांव में मोबाइल के सिग्नल खोजना किसी आविष्कार से कम नहीं
भुजान – रिची – बिल्लेख मोटर मार्ग पर बेतालघाट ब्लॉक का अंतिम गांव कालाखेत ताडी़खेत ब्लॉक की सीमा से सटा हुआ है। जहां एक और संचार क्रांति के इस दौर में नई-नई खोज हो रही है वही कालाखेत गांव आज भी संचार क्रांति में पिछड़ा हुआ हैआलम यह है कि गांव में मोबाइल उपभोक्ता तो है पर मोबाइल महज शोपीस बने हुए हैं। विशेष स्थान पर ही ग्रामीणों को सिग्नल उपलब्ध हो पाते हैं जहां से ग्रामीण परिजनों को फोन करते हैं वहीं अन्य कार्यों के लिए भी सिग्नल की खोजबीन करने के बाद बमुश्किल बातचीत हो पाती है। ग्रामीणों के अनुसार गांव की उपेक्षा की जा रही है कई बार आवाज उठाए जाने के बावजूद मोबाइल टावर स्थापित नहीं किया जा रहा है। जिस कारण काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। एक और प्रदेश सरकार बच्चों के ऑनलाइन पढ़ाई का दावा कर रही है पर ऑनलाइन नेट व्यवस्था तो छोड़िए इस गांव में ढंग से बातचीत ही नहीं हो पाती। आपातकालीन स्थिति में तो दिक्कत और बढ़ जाती है। स्थानीय मनोहर सिंह, मोहन सिंह, खीम सिंह, हीरा सिंह, त्रिलोक मेहरा, माधो राम के अनुसार कई बार आवाज उठाए जाने के बावजूद कोई सुध लेवा नहीं है। मजबूरी में हाथ पर मोबाइल ले सिग्नल ढूंढना मजबूरी बन चुका है। ग्रामीणों ने गांव के समीप मोबाइल टावर स्थापित किए जाने की पुरजोर मांग उठाई है।