पेयजल संकट

= बूंद बूंद पानी को तरसते हैं डीना गांव के वाशिंदे
= गर्मियों में बढ़ जाता है संकट, मवेशियों को बेचना बन जाता है मजबूरी
= गर्मियों के बाद फिर शुरू होता है पशुपालन का कार्य


(((राहुल शर्मा/हरीश चंद्र की रिपोर्ट)))

पर्वतीय क्षेत्रों के सुदूर गांवो के हाल भी अजब-गजब हैं। पेयजल संकट के चलते गांवों में हाहाकार मचा हुआ है। भवाली अल्मोडा़ राजमार्ग से सटा एक गांव ऐसा भी है जहां गर्मी शुरू होने के साथ ही पेयजल संकट इतना बढ़ जाता है कि पशुपालक अपने पशुओं को ही बेच देते हैं। गर्मी निपटने के बाद पशुपालन का का कार्य फिर शुरू होता है।
सुदूर गांवों में पेयजल संकट बड़ा सिरदर्द बन चुका है। समुचित पेयजल आपूर्ति न होने से गांव के लोग सुदूर प्राकृतिक जल स्रोतों की ओर रुख कर रहे हैं। कई किलोमीटर दूर से सिर पर पानी ढोना मजबूरी बन चुका है। सुयालबाडी़ के समीप रामगढ़ ब्लॉक के डीना गांव की कहानी कुछ अलग है। यहां पर पेयजल संकट से ग्रामीण इतने परेशान हो जाते हैं कि करीब ढाई तीन किलोमीटर दूर प्राकृतिक जल स्रोत से पानी ढोना पड़ता है। गांव में करीब पंद्रह परिवार रहते हैं पर गर्मियों में बूंदबूंद पानी के लिए दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ग्रामीणों की माने तो हालात इतने बिगड़ जाते हैं कि मवेशियों को बेचना मजबूरी हो जाती है। खुद के लिए पानी को तरसना पड़ता है ऐसे में मवेशियों के लिए पानी की व्यवस्था नहीं हो पाती और उनको बेचना ही मजबूरी हो जाती है। गर्मी निपटने के बाद गांव में पशुपालन का काम फिर शुरू होता है। गांव की ज्योति जोशी, गंगा देवी, हंसी देवी, मुन्नी देवी, गीता देवी के अनुसार यदि पेयजल की उचित व्यवस्था हो तो पशुओं को ना बेचना पड़े पर पानी उपलब्ध ना होने पर मजबूरी में पशुओं को बेचना पड़ता है।