= पहले कोरोना फिर मौसम की मार अब आपदा ने रुलाया
= हजारो कुतंल होती थी आलू की पैदावार अब खुद खाने को तरसे
= लगातार नुकसान से खेती – बाडी़ से हो रहा मोहभंग
= सुयालबाडी़ में दिनदहाडे़ खेती रौंद रहे जंगली सूअर

((( विरेन्द्र बिष्ट/फिरोज अहमद/मनीष कर्नाटक की रिपोर्ट)))

पहाड़ के धरतीपुत्रो की मुसीबतें कम होने का नाम ही नही ले रही। हाड़तोड मेहनत के बावजूद मेहनत का फल न मिलने से किसान मायूस होते जा रहे है।हजारो कुंतल आलू का उत्पादन करने वाले बेतालघाट ब्लाक के सिमलखा गांव के किसान उपज चौपट होने से किसान निराश है।आलम यह है की अब किसानो का खेती बाडी़ से भी मोहभंग होता जा रहा है।

पहाड़ के किसानो का समय पिछले दो वर्षो से खराब चल रहा है। पहले कोरोना संकट ने किसानो को भारी नुकसान पहुंचाया। बडी़ मंडियों के बंद होने से उपज खेतो में ही बर्बाद हो गई फिर मौसम की बेरुखी से मटर की बुवाई प्रभावित हो गई।सब कुछ ठिक होने की उम्मीद ले किसानो ने दोबारा खेतो को रुख किया तो ठिक समय पर मूसलाधार बारिश ने सब कुछ तहस नहस कर डाला। आलू की बंपर पैदावार के लिए विख्यात बेतालघाट ब्लॉक के सिमलखा गांव में किसानो की आलू की उपज को इस वर्ष भी भारी नुकसान पहुंचा है। जहां एक और खेतो में मलबा आने से खेत रोखड़ बन गए तो वही कई किसानो की उपज बारिश से खराब हो गई है गांव के दो सौ से अधिक किसानो की कभी बीस हजार कुतंल से ज्यादा आलू की पैदावार होती थी पर इस बार किसानो के खुद के खाने के भी लाले है। उपज की पैदावार न के बराबर है।स्थानीय बालम भंडारी, दीवान सिंह जलाल,पूरन जलाल,नवीन जीना,मदन सिंह,अनूप सिंह आदि ने किसानो को उचित मुआवजा दिए जाने की मांग उठाई है।
सुयालबाडी़ गांव में दिनदहाडे़ खेतो को रौंद रहे जंगली सूअर
गांवो में जंगली जानवर भी किसानो के लिए सिरदर्द बने हुए है। पहले जंगली सूअर रात के वक्त ही खेतो तक पहुंच उपज को नुकसान पहुंचा रहे थे पर अब दिनदहाडे़ ही सूअरो का झूड़ खेतो तक पहुंच जा रहा है।सुयालबाडी़ गांव में सुबह के वक्त जंगली सूअरो का झूंड खेतो में पहुंच उपज को रौंद दे रहे है। उपज को नुकसान के साथ ही लोगो पर हमलावर होने का खतरा भी बना हुआ है।ग्राम प्रधान हंसा सुयाल ने सूअरो के आंतक से निजात दिलाए जाने की मांग उठाई है।