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= 92 लाख रुपये की भारीभरकम लागत से तैयार हुआ था बाजार परिसर
= किसानो को लाभ पहुंचाना था मकसद
= नीति निर्माताओं की लापरवाही का जीता जागता उदाहरण बना आपुण बाजार


(((सुनील मेहरा/फिरोज अहमद/हरीश चंद्र की रिपोर्ट)))

सरकार व उसके नुमाइंदों की लापरवाही का जीता जागता उदाहरण देखना हो तो अल्मोड़ा हल्द्वानी हाईवे पर खैरना बाजार के समीप 92 लाख रुपये की भारीभरकम धनराशि से बने आपुण बाजार को देख लिजिऐ।आलम यह है की गांवो के कास्तकार को लाभ पहुंचाने के मकसद से तैयार किए गए आपुण बाजार परिसर भांग की झाडियां घिर गया है। परिसर में भांग की झाडियां निति निर्माताओं की भुमिका पर तमाम सवाल खडे़ कर रहे है। आपुण बाजार के हालात सरकारी बजट की बाजीगरी की तस्वीर जरुर पेश कर रहे है।
वर्ष 2015 में मंडी समिति हल्द्वानी ने अल्मोड़ा हल्द्वानी हाईवे पर स्थित खैरना बाजार के समीप ताड़ीखेत व बेतालघाट ब्लॉक के काश्तकारों को लाभान्वित करने के लिए करीब 0.44 हेक्टेयर (22 नाली) भूमि पर 92 लाख रुपये की भारी-भरकम लागत से आपुण बाजार बनाने की कवायद शुरु की। समय रहते काम पूरा भी कर लिया गया। नीति स्पष्ट न होने से काश्तकारों को आपुण बाजार रिझा नहीं सका वहीं दूसरी ओर कुमाऊँ रेजिमेंटल सेंटर ने जमीन पर अपना हक होने का दावा कर वर्ष 2007 में नैनीताल हाई कोर्ट में वाद दायर कर दिया। बीते कुछ माह पूर्व कोर्ट ने सेना के पक्ष में निर्णय दिया। जिससे मंडी समिति सख्ते में है अब मंडी समिति ने दोबारा स्पेशल अपील दायर कर जमीन पर अपना हक जताया है। पर वर्तमान हालात नीति निर्माताओं की भूमिका पर सवाल खड़े कर रहे हैं। लाखो रुपये खर्च कर बनाए गए बाजार में भांग की झाडियां खडी़ है।
और नहीं मिल सका किसानों को लाभ
अल्मोड़ा हल्द्वानी हाईवे पर स्थित बाजार में मंडी की जमीन पर तहसील बना दी गई। जब कागजात दौडे़ तो राज्य सरकार ने उन्हें मंडी समिति को खैरना में भूमि आवंटित कर दी। जिस पर आपुण बाजार का निर्माण करवाया गया। मंडी समिति ने ताडी़खेत व बेतालघाट ब्लॉक के काश्तकारों की उपज को बेहतर दाम दिलाने के मकसद से आपुण बाजार की स्थापना की। मकसद था कि काश्तकारों को बिचौलियों से बचाया जा सके तथा उनकी उपज का बेहतर दाम दिलाया जा सके। योजना परवान ना चढ़ सकी उल्टा बाजार परिसर अब भांग की झाडियों का महज पहरेदार बनकर रह गया है।