= 21 साल बाद आज भी गांवों की तस्वीर धुधली
= सुविधाओं का पड़ा है अकाल
= पहाड़ के लोग आज भी कर रहे सुविधाओं का इंतजार

(((टीम तीखी नजर की रिपोर्ट)))

राज्य स्थापना दिवस पर एक बार फिर राज्य आंदोलन की याद ताजा हो गई तब बोल पहाड़ी हल्ला बोल से शुरू हुआ राज्य आंदोलन की आवाज आज दब सी गई है। गांवों में सुविधाओं का टोटा है लोग छोटी-छोटी जरूरतों के लिए दूरदराज रुख कर रहे हैं हालात यह है कि गांवो से पलायन बढ़ता जा रहा है। रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य समेत तमाम मुद्दे आज भी मुद्दे बनकर रह गए है। दिन प्रतिदिन बस राज्य में राजनीतिक महत्वाकांक्षा हावी होते जा रही है।

प्रथक उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर शुरू हुए आंदोलन में पहाड़ के लोगों ने भी बढ़-चढ़कर भागीदारी की। पृथक राज्य गठन की खातिर कई आंदोलनकारियों ने शहादत दे दी पर 21 साल बाद भी शहीदो के सपनों का उत्तराखंड नहीं बन सका। गांवों में रोजगार के साधन ना के बराबर है। दो रोटी की खातिर लोग गांव छोड़ रहे हैं। खेती-बाड़ी चौपट हो चुकी है। पशुपालन से मोहभंग हो चुका है। बेहतर स्वास्थ्य सुविधा के लिए लोगों को आज भी कोसों दूर रुख करना पड़ रहा है वही बेहतर शिक्षा के लिए लोग गांव छोड़ने को मजबूर है सरकारी स्कूलों में शिक्षकों का टोटा है। कई अस्पतालों में समुचित चिकित्सक न होने से लोगों को स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ नहीं मिल रहा मशीनें जंग खा रही हैं। इसके उलट राज्य में राजनीतिक महत्वाकांक्षा हावी है। हर चुनाव में वादों की झड़ी लग जाती है पर चुनाव हो जाने के बाद वादे पाताल की गहराइयों में समझ जाते हैं फिर चुनाव आने के बाद एक बार फिर पाताल से वादे बाहर निकल जनता के बीच आते हैं हर बार जनता ठगी जा रही है। राज्य गठन के बाद उम्मीद थी कि सुदूर गांव में अंतिम छोर तक उम्मीद की किरण पहुंचेंगे पर आज भी गांवों के लोग विकास से कोसों दूर है। राज्य की 21 वीं वर्षगांठ धूमधाम से मनाई जा रही है पर सुदूर गांव के लोग आज भी सब कुछ ठीक होने की उम्मीद लिए बैठे हैं।