= बूंदबूंद पानी को ग्रामीण भी तरस रहे
= दस परिवार छोड़ चुके पशुपालन का कार्य
= दिनभर में मिल रहा तीस लीटर पानी

(((मनोज पडलिया/पंकज नेगी/दलिप नेगी/ हरीश कुमार की रिपोर्ट)))

पर्वतीय क्षेत्रों में हालात अजब-गजब हैं। गांवों में हर घर नल से जल योजना के जरिए पानी पहुंचाने के लाख दावे किए जाएं पर धरातल में दावे खोखले साबित हो रहे हैंः रानीखेत खैरना स्टेट हाइवे से सटे कोटखुशाल गांव में योजना का अता पता ही नहीं है। वही पेयजल संकट के चलते अब गांव के लोग आय का एकमात्र जरिया पशुपालन भी छोड़ने को मजबूर हो चुके हैं।
खेती किसानी चौपट होने के बाद गांव के लोगों ने पशुपालन के जरिए आय बढ़ाने की ओर कदम बढ़ा बढ़ाए पर वहां भी ग्रामीणों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। एक ओर गुलदार आए दिन पालतू मवेशियों को निवाला बना रहा है तो वहीं दूसरी ओर पेयजल संकट भी परेशानी का सबब बन चुका है। ग्रामीणों की माने तो कोटखुशाल गांव में पहले गांव के सभी 30 से ज्यादा परिवार पशुपालन का कार्य करते थे पर अब दस से ज्यादा परिवारों ने पेयजल संकट के चलते पशुपालन ही छोड़ दिया है। गांव के लोग को शेर विद्यापीठ योजना से पेयजल उपलब्ध कराया जाता है पर हालत ऐसे है की तीन दिन में एक बार तीस लीटर ही पानी उपलब्ध हो पाता है ।मजबूरी में गांव से चार किलोमीटर दूर एरवा गधेरे से पानी ढोना मजबूरी बन चुका है। पेयजल संकट के कारण ग्रामीण पशुपालन का कार्य छोड़ने को मजबूर है। स्थानीय लक्ष्मण नेगी , आनंद सिंह, पूरन सिंह, नंदन सिंह, जीवन सिंह आदि ग्रामीणों के अनुसार यही हालात रहे तो एक दिन गांव के सभी लोग पशुपालन छोड़ने को मजबूर हो जाएंगे। ग्रामीणों ने तत्काल व्यवस्था में सुधार की मांग उठाई है। चेताया है कि यदि उपेक्षा की गई तो फिर सड़क पर उतर आंदोलन शुरू कर दिया।