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= खस्ताहाल भवन बना जंगली जानवरों का अड्डा
= गांवों में विकास के दावे धरातल में खोखले

(((सुनील मेहरा/पंकज भट्ट/महेंद्र कनवाल की रिपोर्ट)))

प्रदेश में सरकारी योजनाएं सरकारी धन को ठिकाने लगाने का जरिया बन चुकी हैं। आलम यह है कि मुनाफे के फेर व बजट की बाजीगरी के चक्कर में नौनिहालों तक को आज तक अपनी छत तक नसीब नहीं हो सकी। गांवो के अंतिम छोर तक विकास योजनाएं क्रियान्वित कराने का डंका पीटने वाली सरकार की योजनाओं की हकीकत धरातल में खोखली साबित हो रही है। अल्मोड़ा हल्द्वानी हाइवे से सटे जौरासी गांव में दस वर्ष से ज्यादा समय बीतने के बावजूद आंगनबाड़ी भवन का निर्माण आज तक पूरा ही नहीं हो पाया।
अल्मोड़ा हल्द्वानी हाईवे पर स्थित जौरासी(रामगढ़ ब्लॉक) क्षेत्र में करीब दस वर्ष पूर्व आंगनबाड़ी केंद्र निर्माण के लिए लाखों रुपये का बजट स्वीकृत हुआ।मकसद था कि नौनिहालों को अपनी छत नसीब होगी। बेहतर बुनियादी शिक्षा अपनी छत के नीचे दिलाई जा सकेगी पर हुआ इसके बिल्कुल उलट। बजट की बाजीगरी से आंगनबाड़ी केंद्र का निर्माण ही पूरा नहीं हो सका बल्कि धरातल की स्थिति आंगनबाड़ी केंद्र की हकीकत बयां कर रही है। बदहाली में अब केंद्र जंगली जानवरों का अड्डा बन चुका है। केंद्र की छत मवेशियों के लिए घास के लुट्टे रखने के काम आ रही है। वही आधा अधूरा शौचालय नीति निर्माताओं की नियत पर सवाल उठा रहा है। स्थानीय पान सिंह का आरोप है की दो ग्राम प्रधान बदल जाने के बावजूद आज तक आंगनबाड़ी केंद्र का निर्माण पूरा नहीं हो सका। मजबूरी में करीब तेरह नौनिहालों को स्थानीय प्राइमरी स्कूल या फिर बरातघर में शिक्षा लेनी पड़ रही है। व्यवस्था से नाराज ग्रामीणों का पारा सातवें आसमान पर है।