= लोगों के खेत रोकड़ में तब्दील, मकानों में हुआ नुकसान पर नहीं मिल सका मुआवजा
= गांवो के लोगों का सुध लेवा नहीं है कोई
= आज भी मुआवजे का इंतजार कर रहे आपदा प्रभावित

(((कुबेर सिंह जीना/हरीश चंद्र/पंकज भट्ट/भरत सिंह की रिपोर्ट)))

विधानसभा चुनाव के शोरगुल में आपदा प्रभावितों की आवाज दब सी गई है। बीते अक्टूबर में हुई मूसलाधार बारिश के बाद गांवों के लोगों के खेत रोखड़ में तब्दील हो गए। उपज बर्बाद हो गई वहीं कई घरों को भारी नुकसान हुआ पर मुआवजे के नाम पर कुछ भी ना मिल सका। आज भी आपदा प्रभावित मुआवजे का इंतजार कर रहे हैं।
बीते पिछले वर्ष अक्टूबर के महीने हुई मूसलाधार बारिश के साथ आई आपदा ने लोगों को गहरे जख्म दिए। गरमपानी खैरना बाजार में आधा दर्जन से ज्यादा मकान जमींदोज हो गए। लोगों को भारी नुकसान पहुंचा। वहीं गांवों में भी हालात ठीक नहीं है। कई लोगों के घरों में गहरी दरार आ गई। घर ढहने को तैयार है। कृषि भूमि भूस्खलन होने से रोखड़ में तब्दील हो चुकी है। आढू, पूलम, खुमानी के बगीचे भी जमींदोज हो चुके हैं पर मुआवजे के नाम पर ग्रामीणों को कुछ भी नहीं मिल सका है बड़े-बड़े दावे वह वादे करने वाले नीति निर्माता भी कुछ ना कर सके। लोग आज भी मुआवजे का इंतजार कर रहे हैं पर चुनावी शोरगुल इतना है कि उनकी आवाज दब सी गई है। मुआवजा न मिलने से लोगों में भारी गुस्सा भी है।