tikhinazar

= चुनाव आने के साथ आते हैं बाहर
= बड़ा सवाल क्या फिर ठगी जाएगी जनता या देगी करारा जवाब

(((तीखी नजर की स्पेशल रिपोर्ट)))

राज्य गठन के बाद से ही पर्वतीय क्षेत्रो में स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार का मुद्दा जोरशोर से उठता रहा। प्रत्येक विधानसभा चुनाओं में गंभीर मुद्दो के समाधान को दावे किए जाते पर चुनाव खत्म होते ही मुद्दे पाताललोक में लुप्त हो जाते। चुनाव की रणभेरी बजने के साथ फिर मुद्दे पाताललोक से निकल बाहर आते। मुद्दो को हवा देकर पहाड़ के लोगो को सपने दिखाए जाते पर चुनाव निपटते ही अगले चुनाओं के लिए मुद्दो को फिर संभाल लिया जाता। हो भी क्यो न अगर मुद्दे ही खत्म हो गए तो फिर चुनाव में कैसे मुद्दो का पहाड़ बनेगा और पहाड़ के लोग कैसे ठगे जाऐगे।

आगामी विधानसभा चुनाव की रणभेरी लगभग बज चुकी है। सभी राजनैतिक दल जोर-शोर से तैयारियों में जुट चुके हैं पर आज भी पहाड़ के मुद्दे जड़ है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार जैसी मूलभूत समस्याएं मुंह उठाए खड़ी है। रोजगार की तलाश में गांव की जवानी पलायन कर चुकी है गांव का पानी गांव के लोगों को ही नसीब नहीं हो रहा। बेहतर स्वास्थ्य सुविधा के लिए गांव के लोगों को कई किलोमीटर दूर जाना मजबूरी बन चुका है। नौनिहालों को बेहतर शिक्षा दिलाने के लिए लोग घरों को छोड़ शहरों की ओर जा रहे हैं। प्रत्येक विधानसभा चुनाव में रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे बड़े मुद्दों को प्राथमिकता में रखा जाता है पर चुनाव निपटने के के साथ ही यही प्रमुख मुद्दे पाताल की गहराइयों में समा जाते हैं। राज्य गठन के बाद उम्मीद जगी थी कि अब पहाड़ का पानी पहाड़ का जवानी पहाड़ के काम आएगी पर धीरे-धीरे सपने टूटते चले गए। महज सत्ता हासिल करने की जोर आजमाइश साफ दिखाई देती है। और हो भी क्यों ना यदि मुद्दों का ही समाधान हो गया तो फिर चुनाव ही कैसे। तो फिर एक बार फिर हो जाइए तैयार। चुनाव के साथ ही आप एक फिर से ठगे जाएंगे।