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= ढाई सौ से ज्यादा पशुपालको के लिए गांव में नहीं बना है पशु अस्पताल
= उपचार के लिए कई किमी दूरी नापना बना मजबूरी
= ग्रामीणों ने उठाई गांव के मध्य में पशु अस्पताल स्थापित करने की मांग

(((महेन्द्र कनवाल/मनीष कर्नाटक/हरीश कुमार की रिपोर्ट)))

द्वारसौ काकडी़घाट मोटर मार्ग में स्थित गांवो में उपचार के अभाव में मवेशी दम तोड़ रहे हैं। हालात बद से बदतर हैं। करीब ढाई सौ से ज्यादा पशुपालक होने के बावजूद एक भी पशु अस्पताल नहीं बना है। जिस कारण मवेशियों के उपचार ही नहीं मिल पाता ऐसे में उपचार के अभाव में पालतू मवेशी दम तोड़ देते हैं।
जंगली जानवरों के आतंक से लगातार गांवों में खेती चौपट होती जा रही है। खेती से मोह भंग होने के बाद गांवों के लोगों ने पशुपालन की ओर रुख किया तो अब वहां भी लगातार नुकसान उठाना पड़ रहा है। द्वारसौ काकडी़घाट मोटर मार्ग पर स्थित देहोली, कालनू, सिमोली, शिवाली आदि तमाम गांवों के आसपास एक भी पशु अस्पताल नहीं है जबकि इन गांवो में करीब ढाई सौ से ज्यादा परिवार पशुपालन का कार्य कर रहे हैं। स्थानीय महेंद्र सिंह ने आरोप लगाया है कि पशुओ के लिए उपचार सुविधा न होने से उपचार के अभाव में पालतू मवेशी दम तोड़ जाते हैं ऐसे में लगातार नुकसान उठाना पड़ रहा है।कुछ दिन पूर्व ही जीवन सिंह की गोवंशीय पशु उपचार के अभाव में दम तोड़ गई। ऐसे ही कई पशुपालक के पशुओं को भी उपचार नही मिल पाता। स्थानीय गुमान सिंह, दीवान सिंह, राजेंद्र सिंह, महेंद्र सिंह आदि लोगों ने गांव के के मध्य में पशु अस्पताल स्थापित किए जाने की मांग की है ताकि पशुपालकों को इसका लाभ मिल सके और समय पर पशुओं को उपचार भी दिलाया जा सके। दो टूक चेतावनी भी दी है कि यदि उपेक्षा की गई तो फिर आंदोलन की रणनीति तैयार की जाएगी।