🔳 जंगली जानवरों से मटर की उपज बचाने को निकाला नया तरीका
🔳 रोजाना रात को प्रत्येक तंबू में चार-चार किसान दे रहे पहरा
🔳 सफल होने लगा तरीका जानवर खेतों की ओर नहीं कर रहे रूख
🔳 जिम्मेदारों की अनदेखी से खुद खेती बचाने उतरे धरतीपुत्र
[[[[[[[[[ टीम तीखी नजर की रिपोर्ट ]]]]]]]]]]

बेतालघाट ब्लॉक के सब्जी उत्पादक लोहाली गांव के किसानों ने मटर की उपज बचाने को अब खेतों में ही तंबू गाड़ लिए है। रात भर किसान खेतों में पहरा दे जंगली जानवरों से उपज बचाने को बाजा भी बजा रहे हैं। रात को पहरा देने को गांव से अलग अलग परिवारों के चार चार सदस्यों की बकायदा रोस्टर बनाकर डूयूटी लगाई गई है। धरतीपुत्रों के अनुसार खेती को सुरक्षित करने को जिम्मेदारों के मुंह मोड़ लेने से अब खुद ही रातों को खेतों में पहरा देना मजबूरी बन चुका है।
कोसी घाटी के तमाम गांव फल व सब्जी उत्पादक पट्टी के नाम से विख्यात है। गांवों की सब्जियों व फलों की धमक दिल्ली, मुंबई, लखनऊ, कानपुर जैसे शहरों तक है। पिछ्ले कुछ वर्षों से खेतों में बंदरों व जंगली सूअर, खरगोश, मोर समेत अन्य जंगली जानवरों की घुसपैठ से उत्पादन कम होता जा रहा है। जंगली जानवर किसानों को लगातार नुकसान पहुंचा रहे हैं। खेती-बाड़ी बचाने को लगातार आवाज उठाए जाने के बावजूद सुनवाई न होने आखिरकार अल्मोड़ा हल्द्वानी हाईवे से सटे लोहाली गांव के धरतीपुत्रों को खुद ही कदम आगे बढ़ाने पड़े। किसानों ने गांव में बैठक कर जंगली जानवरों से खेती बचाने को विशेष रणनीति तैयार की। रणनीति के पहले चरण में खेतों के आसपास चार दिशाओं में तंबू गाड़े गए। रातभर खेतों में पहरा देने को प्रत्येक तंबू में चार चार सदस्यों की डूयूटी लगाई गई। समीपवर्ती बाजार क्षेत्रों से तेज आवाज करने वाले बाजे खरीद कर लाए गए और कर दी गई नई शुरुआत। पिछले पंद्रह दिनों से किसान रोजाना खेतों में पहरा दे जानवरों को भगाने के लिए बाजा बजाकर शोरगुल कर रहे हैं। चारों दिशाओं से आवाज होने से जंगली जानवर खेतों की ओर रुख करने में कतरा रहे हैं और काफि हद तक मटर की उपज सुरक्षित हो रही है। काश्तकार हरेन्द्र बिष्ट, भूपाल नेगी, चंदन नेगी, दिल्लू, सुरेन्द्र रावत, सागर नेगी, विकास नेगी के अनुसार मटर की बेहतर पैदावार को बचाने को इस वर्ष खेतों में ही पहले देने पहरा देने का निर्णय लिया गया। यह फैसला काफी हद तक सफल हो रहा है। चारों दिशाओं में टेंट लगे होने वह रात को लगातार बाजे की आवाज से जंगली जानवर खेतों तक नहीं पहुंच रहे।

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