🔳मुख्यमंत्री दाल पोषित योजना के तहत दाल वितरण की है योजना
🔳दाल के लिए कार्डधारक करते हैं छह छह महीने का इंतजार
🔳बाजार भाव से बेहद कम कीमत पर दो किलो दाल उपलब्ध कराने का है प्रावधान
🔳पहले मिलती थी मसूर अब महज मिलती है चने की दाल
🔳पूर्ति निरीक्षक का दावा – जब मिलता है कोटा तो किया जाता है वितरित

((( टीम तीखी नजर की रिपोर्ट)))

शरीर में प्रोटीन की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से चलाई गई मुख्यमंत्री दाल पोषित योजना का लाभ पर्वतीय क्षेत्रों में छह छह महीने के अंतराल में मिल पा रहा है। शुरुआत में मिलने वाली पौष्टिक मसूर की दाल तो अब पूरी तरीके से गायब ही हो चुकी है। पूर्ति निरीक्षक अनीता पंत के अनुसार जब भी कोटा उपलब्ध होता है तत्काल वितरित कर दिया जाता है।

प्रदेश के लोगों को सरकारी योजनाओं से लाभान्वित करने को अनगिनत योजनाएं तैयार की जाती है पर योजनाओं की सही मॉनिटरिंग ना होने से योजनाओं का लाभ पर्वतीय क्षेत्र के बाशिंदों को नहीं मिल पाता। खाद्य व नागरिक आपूर्ति विभाग में भी कई योजनाएं संचालित होने के बाद भी उपभोक्ताओं को लाभ नहीं मिल रहा। कोरोनाकाल के बाद सरकार ने बिमारियों से बचाव को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराने व शरीर में प्रोटीन की पर्याप्त उपलब्धता के मकसद से मुख्यमंत्री दाल पोषित योजना का श्रीगणेश किया। शुरुआत में चना व मसूर की दाल वितरित की गई पर धीरे-धीरे मसूर का वितरण बंद हो गया। महज चना दाल से ही कार्डधारकों को संतोष करना पड़ा। प्रत्येक कार्ड धारक को दो किलो दाल उपलब्ध कराने का प्रावधान था। अब आलम यह है कि दाल के लिए कार्डधारकों को छह महीने से भी अधिक का इंतजार करना पड़ता है। छह छह महीने के अंतराल में ही चने की दाल उपलब्ध होती है हालांकि दाल का भाव बाजार मूल्य से कम होता है पर लंबे समय में दाल उपलब्ध होने से कार्ड धारकों को समुचित लाभ नहीं मिल पाता। कार्डधारकों के अनुसार मंडवा वितरण योजना का सही संचालन न होने के बाद अब मुख्यमंत्री दाल पोषित योजना का भी आधा अधूरा लाभ मिल पा रहा है। अकेले बेतालघाट व रामगढ़ ब्लॉक के ही करीब दस हजार से भी ज्यादा उपभोक्ता दाल न मिलने से मायूस है। इधर पूर्ति निरीक्षक अनिता पंत के अनुसार दाल का कोटा छह महीने में ही उपलब्ध होता है अभी दाल उपलब्ध नहीं हो सकी है। जैसे ही दाल उपलब्ध होगी वितरित कर दी जाएगी।