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जंगली जानवरो के आंतक से परेशान ग्रामीणों खोज रहे नए नए उपाय

(((पंकज नेगी/अंकित सुयाल/पंकज भट्ट की रिपोर्ट)))

पर्वतीय क्षेत्रों में किसानों की आय दोगुनी करने करने के लाख दावे किए जाएं पर धरातल में दावे खोखले साबित हो रहे हैं। आय दोगुनी तो छोड़िए किसानों की खेती सुरक्षित करने के लिए ही ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं मजबूरी में किसान कामचलाऊ व्यवस्था के सहारे खेती सुरक्षित करनी पड़ रही है।
पर्वतीय क्षेत्र के सुदूर गांवों में धरतीपुत्र निराश व मायूस है। कभी लॉकडाउन तो कभी बारिश ना होने से किसानों का खेती से मन मोह भंग हो चुका है। कुछ काश्तकार जो खेती कर भी रहे हैं वह भी सरकार व विभागों की हीलाहवाली का दंश झेलने को मजबूर है। हाल यह है कि जंगली जानवरों से खेती को सुरक्षित करने के लिए सरकार बार-बार सूअर रोधी दीवार आदि के तमाम दावे करती है पर धरातल पर दावे खोखले साबित हो रहे हैं। गांवों में किसानों को योजनाओं का लाभ ही नहीं मिल रहा हालांकि सरकार व संबंधित विभाग किसानों की आय दोगुनी करने के खूब ढोल पीट रहे हैं पर धरातल की तस्वीर दूसरी ही हकीकत बयां कर रही है। जंगली जानवरों से खेती बचाने को गांवो में किसान घर के कपड़े, साड़ियां, धोती आदि का इस्तेमाल कर रहे हैं। हालांकि किसान साड़ी, धोती व कपड़ों की घेरबाड़ बना खेती बचाने का प्रयास कर अपना मन समझा रहे हैं पर हकीकत तो यह है कि जंगली जानवर कपड़ों से बने घेरबाड़ को कुछ समझ ही नहीं रहे और आए दिन खेतों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। काश्तकार राजेंद्र सिंह, धाम सिंह, महेंद्र सिंह, हीरा सिंह, भुवन सिंह आदि लोगों ने गांवों में किसानों की खेती सुरक्षित करने को तारबाड़ मुहैया कराए जाने की पुरजोर मांग उठाई है।