= वर्ष 1990 में ग्रामीणों ने शुरु किया बंदर भगाओ अभियान
= गांव में नहीं फटकता एक भी बंदर
(((विरेन्द्र बिष्ट/पंकज नेगी/कुबेर सिंह जीना)))
प्रदेश के तमाम गांवों में जहां बंदरों का उत्पात है।बंदर खेती उजाड़ रहे हैं। घरों से तक सामान उठा ले जा रहे है। कई ग्रामीणों को घायल तक कर चुके हैं। वहीं अल्मोड़ा हल्द्वानी हाइवे से सटे एक ऐसा गांव जहां वानरराज की नो एंट्री है। इसे ग्रामीणों की मेहनत कहे या इंसानों का खौफ यहां वानरराज फटकते तक नहीं।
पढ़ने में जरूर अटपटा लग रहा है पर यह बात सौ फ़ीसद सच है। बात वर्ष 1990 के आसपास की है। अल्मोड़ा हल्द्वानी हाइवे से सटे बेतालघाट ब्लॉक के छड़ा गांव में बंदरों का भारी उत्पात था। खेती-बाड़ी चौपट हो चुकी थी। घरों से बंदर सामान उठा ले जा रहे थे। तब परेशान ग्रामीणों ने गांव में बैठक की। मातृशक्ति भी साथ देने को आगे बढ़ी और रोजाना गांव व खेत से बंदर भगाने का अभियान शुरु किया गया। रोजाना दो लोगो की ड्यूटी बंदर भगाने में लगाई गई। यह सिलसिला वर्ष 2000 तक चला। आज हालत यह है कि बंदर गांव में नहीं फटकते। रोजाना कभी दो महिलाएं तो कभी दो पुरुष रोजाना ड्यूटी देते। सुबह आठ बजे से देर रात तक ड्यूटी लगती। लगातार सिलसिला चला। आज गांव बंदर मुक्त है।
बागवानी की ओर बढ़ रहे कदम
छड़ा गांव के काश्तकार महेंद्र सिंह बिष्ट, पूर्व सरपंच धन सिंह, नंदन सिंह, विक्रम सिंह, दीवान सिंह, गोपाल सिंह के अनुसार बंदरों की सेना का आतंक गांव में बिल्कुल भी नहीं है। इसी का नतीजा है कि गांव में सब्जी की अच्छी पैदावार होती है। ग्रामीण बागवानी की ओर भी रुख कर रहे हैं। हालात यह है कि बंजर भूमि पर भी अब आडू के पौधे लगाए जा रहे हैं।
बाजार भी बंदरों के आतंक से मुक्त
वानरराज के आतंक से छड़ा गांव ही नहीं बल्कि बाजार भी मुक्त है।अल्मोड़ा हल्द्वानी हाईवे से छड़ा गांव करीब एक किलोमीटर की दूरी पर है। गांव में ही बंदर नहीं आते बल्कि बाजार क्षेत्र में भी बंदर दूर-दूर तक नहीं दिखाई देते। बंदरों का आतंक ना होने से स्थानीय व्यापारियों को काफी राहत है।