= कभी गांव में पाली जाती थी चार हजार से ज्यादा बकरियां
(((तीखी नजर संवाददाता की रिपोर्ट)))
जंगली जानवर का आंतक व मौसम की मार ने जहां किसानों की कमर तोड़ के रख दी है वहीं रोजगार का एकमात्र साधन पशुपालन भी अब चौपट होता जा रहा है। बेतालघाट ब्लॉक के तमाम गांव में पशुपालकों की दयनीय हालत हकीकत बयां कर रही है।
कोरोना संक्रमण के बाद लगे लॉकडाउन से किसानों की काफी उपज खेतों में ही बर्बाद हुई जिससे किसानों को काफी नुकसान हुआ। गांवों में बचा एकमात्र रोजगार का जरिया भी लगातार प्रभावित होता जा रहा है। बेतालघाट ब्लॉक के सुदूर कालाखेत गांव में पशुपालक जंगली जानवरों के आतंक से परेशान हैं। ग्रामीणों के अनुसार कभी गांव में पशुपालकों के पास चार हजार से ज्यादा बकरियां थी जो पशुपालकों की आय का बेहतर जरिया था। सब कुछ ठीक-ठाक था पर लगातार जंगली जानवरों के आतंक व गुलदार की घुसपैठ ने सब कुछ चौपट कर दिया। अब आलम यह है कि गांव में बकरियां ही नहीं बची है न ही पशुपालक गांव में बकरी पालन करते है। इक्का-दुक्का पशुपालक मन भी बनाते हैं और बकरी पालन शुरु भी करते हैं तो कुछ दिनों बाद गुलदार बकरियों को निवाला बना देता है। ऐसे में निराशा ही हाथ लगती है। आलम यह है कि अब पशुपालकों का पशुपालन से भी मोहभंग होने लगा है। पशुपालन चौपट हो चुका है पर कोई सुध नहीं ले रहा। ग्रामीणों ने पशुपालकों को उचित मुआवजा देने तथा पशुपालन के लिए जंगली जानवरों की घुसपैठ रोके जाने की मांग उठाई है।