= एक टीएसआर क्या गए दूसरे टीएसआर की भी विदाई की तैयारी
= शाम होते-होते सत्ता के गलियारों में मच गई हलचल
= लगातार बदलते जा रहे सीएम के चेहरे
((( विशेष संवाददाता की रिपोर्ट)))
राजनैतिक गलियारों में मची हलचल के बाद आखिरकार तस्वीर अब साफ होने लगी है ।एक टीएसआर कुमाऊं दौरा कर वापस लौटे ही थे की दूसरे टीएसआर को आलाकमान से बुलावा आ गया। हवा में तमाम खबरे तैरती रही।और आखिर में आलाकमान की चली। तमाम दावे करने के बावजूद आखिरकार कुछ समय पहले ही राज्य के मुखिया की कुर्सी संभालने वाले तीरथ सिंह रावत की कुर्सी संकट में आ गई है। तो क्या अब एक बार फिर उत्तराखंड प्रदेश एक नए मुख्यमंत्री का चेहरा देखेगा।
यूं तो प्रदेश में बड़े राजनीतिक घटनाक्रम होते रहे पर एकाएक सीएम जैसे पद पर लगातार परिवर्तन अजीबोगरीब है। नौकरशाही में बदलते घटनाक्रम आम बात है पर राज्य के मुखिया की कुर्सी के बदलते समीकरण बड़ी बात है। प्रदेश को संभालने वाला मुखिया सांस भी नहीं ले पा रहा, कार्यकाल शुरू करने के लिए कुर्सी में बैठ भी नहीं पा रहा कि हाईकमान से कुर्सी छोड़ने के आदेश पहुंच रहे हैं। पूर्ण बहुमत के बावजूद प्रदेश के लिए स्थापित सीएम नहीं मिल पा रहा। छोटे से राज्य में कई मुख्यमंत्री बदल चुके हैं पर नहीं बदल रहे तो सिर्फ राज्य के हालात। अक्सर राज काज को समझने से पहले कलेक्टर, डिप्टी कलेक्टर को एकाएक बदलते सुना था पर यहां तो राज्य का मुखिया ही बदल जा रहा है। अब एक बार फिर प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की सुगबुगाहट शुरू हो गई है।
सीएम पद के लिए फिर होगी रस्साकस्सी
प्रदेश के मुखिया की कुर्सी के लिए एक बार फिर दौड़ शुरु होगी। किसके सिर ताज सजेगा यह तो अभी भविष्य के भविष्य के गर्भ में है पर इतना साफ है की राज्य में पूर्व मुख्यमंत्री का तमगा कई लोगो के कंधे पर सज गया है।
शहीदों ने सपने देखे क्या हो गया क्या
पृथक राज्य की लड़ाई लड़ने वाले शहीद राज्य आंदोलनकारियों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जिस राज्य की मांग के लिए वह अपनी जान कुर्बान कर रहे हैं उस राज्य में राजनीति ही भारी पड़ जाएगी। महज सत्ता की दौड़ हावी रहेगी और मूलभूत मुद्दे भुला दिए जाएंगे। लगातार राजनीति के चक्रव्यूह में फंस रहे छोटे से राज्य की दुर्दशा पर प्रदेश की जनता भी हैरान है।
रेस में शामिल होंगे नेता,मुद्दे नहीं
हालांकि सीएम की रेस में तमाम नेता शामिल होंगे पर बड़ा सवालिया है कि उत्तराखंड में समस्याओं के खात्मे की रेस कब शुरू होगी। कब सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे मुद्दे हारेंगे और उत्तराखंड प्रदेश जीतेगा। कब किसान को परेशानी से निजात मिलेगी ? कब युवाओं को रोजगार मिलेगा ? क्या यूं ही गांव के युवा पूरी जिंदगी रोजगार की दौड़ में पूरी उम्र निकाल देंगे। आखिरकार कब पहाड़ की जवानी और पहाड़ का पानी पहाड़ के काम आएगा।