= खेतों में कर रहे हाड़तोड़ मेहनत
= सरकारी योजना का लाभ लेने को भी बहा रहे पसीना
= लगातार उपेक्षा से चढ़ रहा पारा


(((सुनील मेहरा की स्पेशल रिपोर्ट)))

पहाड़ के अन्नदाता पर्वतीय क्षेत्रों में पहाड़ जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। आलम यह है कि विभागों के कार्य भी किसानों को करने पड़ रहे हैं जिस कारण किसानों पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है विभागों की लगातार उपेक्षा से गांवों में जनाक्रोश भड़कने लगा।
रानीखेत खैरना स्टेट हाइवे से सटे कुंजगढ़ घाटी में सब्जी की बंपर पैदावार होती है। साथ ही कई हेक्टेयर कृषि भूमि पर धान की रोपाई होती है। इसके लिए किसान हाड़ तोड़ मेहनत कर पसीना बहाते है पर सरकार से मिलने वाली मदद के लिए किसान तरस रहे है। कुंजगढ़ नदी से तिपौला तथा टूनाकोट गांवो के करीब दो सौ से अधिक किसानों के खेतों तक पानी पहुंचाने को नहर तो बना दी गई पर नहर के शुरुआत में ही तटबंध के क्षतिग्रस्त होने से किसानों को लाभ नहीं मिल रहा। ऐसे में किसानों ने खुद ही तटबंध निर्माण का जिम्मा उठा लिया। शुक्रवार को धरतीपुत्र कुंजगढ़ नदी पर इकट्ठा हुए। साथ देने के लिए बच्चे व महिलाएं भी जुट गई। कई घंटे मेहनत के बाद नहर की शुरुआत में तटबंध तैयार कर खेतों तक पानी पहुंचा दिया गया। किसानों ने सिंचाई विभाग की उपेक्षा पर रोष भी जताया। तटबंध निर्माण में गोपाल सिंह, कमल सिंह, शंकर सिंह, नवीन सिंह, श्याम सिंह, पूरन सिंह, जीवन सिंह, सुनीता देवी, शोभा देवी, कमला देवी, माया मेहरा आदि किसानों ने सहयोग किया।