= जूनियर हाई स्कूल खान कर रहा शिक्षा विभाग की बदहाली बंया
= कमरों में भरा मलवा जस का तस
(((महेंद्र कनवाल की रिपोर्ट)))
पहाड़ों में शिक्षा के मंदिरों को चाक-चौबंद करने के लाख दावे तो जरूर किए जाते हैं पर धरातल की तस्वीर कुछ अलग ही हकीकत बयां कर रही है। अल्मोड़ा भवाली हाइवे से सटे जूनियर हाई स्कूल खान का कोई सुध लेवा नहीं है। हालात यह है कि वर्ष 2010 की आपदा का मलवा अभी भी कमरे में भरा पड़ा है।
खान गांव के जूनियर हाईस्कूल में आसपास के दस नौनिहाल अध्ययनरत हैं। तीन कमरों के विद्यालय में एक कमरे में वर्ष 2010 में आई आपदा का मलवा आज भी जस का तस पड़ा हुआ है। हालात इस कदर खराब है कि विद्यालय की खिड़कियां पत्थर लगाकर रोकी गई है। खिड़की दरवाजे टूटे-फूटे हैं। छत भी क्षतिग्रस्त हो चुकी है। बावजूद कोई सुनवाई नहीं हो रही। नौनिहाल व विद्यालय के प्रधानाचार्य, शिक्षिका तथा पर्यावरण मित्र पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। विद्यालय की दशा शिक्षा विभाग की कार्यशैली उजागर कर रही है। विद्यालय प्रबंधन के अनुसार वर्ष 2017 में विद्यालय के निर्माण के लिए 17.42 लाख रुपये की धनराशि स्वीकृत हुई। बकायदा 8.71 लाख रुपये अवमुक्त भी हो गए पर नए भवन का निर्माण नहीं हो सका। बीते फरवरी में पैसा वापस भी हो चुका है। अब विद्यालय बजट की बांट जोह रहा है। तत्कालीन विद्यालय प्रबंधन समिति के अध्यक्ष शंकर दत्त कांडपाल के अनुसार वर्तमान में विद्यालय खतरे की जद में है। विद्यालय को अन्यत्र जमीन पर बनाया जाना चाहिए ताकि खतरा टल सके। विद्यालय प्रबंधन के अनुसार लगातार उच्चाधिकारियों को पत्राचार भी किया जा रहा है। विद्यालय में खतरा बना हुआ है वहीं विद्यालय परिसर के आसपास विशालकाय पेड़ भी खतरे को दावत दे रहे हैं।