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= इतने सालों में एक भी औद्योगिक इकाई नहीं हो सकी स्थापित
= ठगे ही गए पहाड़ के युवा

(((हरीश चंद्र/पंकज नेगी/शेखर दानी की रिपोर्ट)))

पिछले वर्ष से ही कोरोना रूपी संक्रमण से देश-दुनिया परेशान हैं। उत्तराखंड राज्य में भी इसका बड़ा असर है। बाहरी महानगरों तथा राज्य में रोजगार कर दो रोटी कमाने वाले प्रवासी वापस गांव पहुंच कर चुके हैं। बेरोजगारी का आलम यह है कि बीते एक वर्ष खाली बैठने के बाद इस वर्ष भी युवा परेशान है। पर बड़ा सवाल है कि राज्य को बने 21 साल हो गए पर आज तक पर्वतीय क्षेत्रों में ही रोजगार की व्यवस्था क्यों नहीं की गई। ना ही कोई उद्योग लगाने का प्रयास ही हुआ। यदि समय रहते उद्योग स्थापित किया गया होता तो शायद पर्वतीय क्षेत्र के युवाओं को पलायन न करना पड़ता अपने ही गांव में रोजगार मिलता।
कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित युवा वर्ग है। नौकरी हाथ से जाने के बाद युवा वर्ग खासा परेशान है पर सबसे बड़ा सवाल खड़ा होता है क्या कि 21 वर्ष के उत्तराखंड में नीति निर्माता आज तक गांवों में औद्योगिक इकाइयां स्थापित क्यों नहीं कर पाए। सिडकुल की तर्ज पर गांवों में औद्योगिक इकाइयां स्थापित करने की कई बार मांग उठी पर हर बार आवाज दबी की दबी रह गई। युवा हर बार छले गए ठगे गए। पिछले दो वर्षों से युवाओं के लिए बड़ी संकट की घड़ी सामने आई है पर नीति निर्माता गांव में रोजगार की पहल नहीं कर रहे और हो भी क्यों 21 वर्षों से कोई रूपरेखा तैयार भी नहीं की गई यदि राज्य गठन के बाद गांवों के विकास को दम भरने वाले राजनीतिक दलों के नेता पर्वतीय क्षेत्र में औद्योगिक इकाइयां स्थापित करने की बुनियाद भी रखते तो शायद 21 वर्ष में औद्योगिक इकाई शुरू हो गई होती। पर शायद किसी को गांव का विकास मंजूर नहीं। उपेक्षा से आहत युवा गांव छोड़ दो रोटी कमा रहे पर अब कोरोना ने युवाओं को वापस घरों की राह दिखा दी है। ऐसे में युवा वर्ग खासा परेशान है।