= 2010 की आपदा में हो गया था क्षतिग्रस्त
= ग्रामीणों की उपजाऊ भूमि तक पहुंचने के लिए सिरोता नदी पर बना है पुल
= नदी के वेग बढ़ने पर खेतों में ही बर्बाद हो जाती है उपज

(((महेन्द्र कनवाल/हरीश चंद्र/अंकित सुयाल की रिपोर्ट)))

गांव में सुविधाएं पहुंचाने के लाख दावे किए जाएं पर हकीकत में दावे खोखले साबित हो रहे हैं। आलम यह है कि ग्रामीण जान जोखिम में डाल नदी को पार कर अपनी कृषि भूमि तक पहुंच पाते हैं। पानी का बहाव तेज होने पर उपज खेतों में ही बर्बाद हो जाती है। गांव के लोगों ने नदी पर क्षतिग्रस्त पुल के पुनर्निर्माण की मांग उठाई है।
गांवों के बाशिंदे तमाम कठिनाइयों से जूझ जिंदगी गुजर बसर कर रहे हैं। जंगली जानवर व मौसम की मार से पहले ही आय का एकमात्र साधन खेती किसानी चौपट हो चुका है। विभागीय काहिली भी ग्रामीणों पर भारी है। अल्मोड़ा हल्द्वानी हाईवे से तमाम गांवों को जोड़ने वाले द्वारसो काकडीघाट मोटर मार्ग पर स्थित डूंगरा, खान तथा अलमियाकांडे , जाला गांव के तमाम किसानों की कृषि भूमि सिरौता नदी के तट पर स्थित है। शिमला मिर्च, गोभी, मूली, टमाटर आदि की बंपर पैदावार होती है पर वर्ष 2010 में सिरौता नदी के रौद्र वेग ने नदी पर बनी पुल का एक हिस्सा क्षतिग्रस्त कर दिया तथा पुल एक ओर झुक गया तब से आज तक 11 वर्ष बीतने के बावजूद किसी ने सुध नहीं ली है। ग्रामीण जान जोखिम में डाल पुल पर आवाजाही कर रहे हैं। बारिश होने व नदी का वेग बढ़ने पर ग्रामीण कृषि भूमि तक नहीं पहुंच पाते ऐसे में कई बार उपज खेतों में ही बर्बाद हो जाती है। स्थानीय बालम सिंह, यशवंत सिंह, किशन सिंह, हिम्मत सिंह, नीरज ढोडियाल, महेन्द्र सिंह आदि ने पुल के पुनर्निर्माण की पुरजोर मांग उठाई है ताकि कृषि भूमि से उपज आसानी से बाजार तक लाई जा सके।